अब देशी गायों का दूध पीयेगा राजस्थानवासी
झुंझुनू,17 दिसंबर : राजस्थानवासी अब विदेशी गायों की बजाय देसी गायों का दूध पियेंगे। 2020 में शुरू हुए राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम के पहले चरण में कुछ ज़िलों के चुनींदा गांव ही शामिल थे।
पशु विज्ञान केन्द्र झुंझुनू के प्रभारी अधिकारी डॉ. प्रमोद कुमार के अनुसार गत अगस्त से राज्य के सभी जिलों में कार्यक्रम का चौथा चरण शुरू हुआ है। कार्यक्रम के शुरुआत के समय लम्पी बीमारी आ गई थी। अब लम्पी का असर कम होने पर कार्यक्रम फिर से गति पकडने लगा है। कृत्रिम गर्भाधान में चार देसी नस्लों को प्राथमिकता दी जा रही है। पहले इसमें होलेस्टियन एवं जर्सी नस्ल के विदेशी गोवंश ज्यादा काम में लिए जाते थे। देसी गायों की चारों नस्ल सबसे ज्यादा दूध देने के लिए प्रसिद्ध है। इनमें गिर नस्ल की गाय गुजरात के गिर क्षेत्र में ज्यादा पाई जाती हैं।
कार्यक्रम के तहत गर्भाधान पर पशुपालक से कोई राशि नहीं ली जाती है। पशुपालक एवं पशु के आंकड़े ऑनलाइन दिल्ली में कार्यक्रम के अधिकारियों को भेजे जाते हैं। वे पशुपालक से फोन के माध्यम से सत्यापन करते हैं। सही मिलने पर विभाग को प्रति गर्भाधान 240 रुपए दिए जाते हैं। राजस्थान में गायों की संख्या तो बढ़ रही है, लेकिन देसी गायों की संख्या कम है। अकेले झुंझुनू जिले में देसी गोवंश एक लाख से कम है, जबकि विदेशी-संकर गोवंश की संख्या दो लाख के निकट पहुंच गई है।
देसी गायों को बढ़ावा देने के लिए कामधेनू डेयरी योजना पहले से चल रही है। इस पर सरकार अनुदान देती है। वहीं राजस्थान पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विवि बीकानेर भी देसी गायों की छह नस्लों को बढ़ावा दे रहा है।
पशु विज्ञान केन्द्र झुंझुनू के प्रभारी अधिकारी डॉ. प्रमोद कुमार के अनुसार देसी नस्ल की गायों में ए टू दूध मिलता है। यह संकर-विदेशी की तुलना में ज्यादा गुणकारी होता है। देसी गायों की नस्ल के दूध में पौषक तत्वों की मात्रा ज्यादा होती है। आयुर्वेद की अनेक दवाओं में देसी गाय के घी दूध को ही ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है।
पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ रामेश्वर सिंह ने बताया कि अभी कृत्रिम गर्भाधान के लिए चार प्रकार की देसी नस्लों को प्राथमिकता दी जा रही है। देसी गाय के दूध में विदेशी की तुलना में फैट व ठोस पदार्थ की मात्रा ज्यादा होती है।