देववर्मा के निधन से आईपीएफटी के भविष्य को लेकर लग रहे हैं कयास
अगरतला, 02 जनवरी : त्रिपुरा विधानसभा के वरिष्ठतम सदस्य, वन एवं राजस्व मंत्री और सरकार में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सहयोगी पार्टी इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के संस्थापक अध्यक्ष एन सी देववर्मा का सोमवार को पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनके पैतृक गांव खोवाई जिले के महारानीपुर के नक्सिरायपारा में अंतिम संस्कार किया गया।
श्री देववर्मा के निधन के बाद आईपीएफटी के भविष्य को लेकर राजनीतिक हलकों में पार्टी के भविष्य को लेकर कयास लगाये जा रहे हैं। कुछ राजनीतिक पंडितों ने आईपीएफटी का भविष्य अंधकारमय होने की अटकलें लगाई हैं।
श्री देववर्मा लंबे समय से उम्र जनित बीमारियों से पीड़ित थे और गुरुवार को उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ। डॉक्टरों ने अगले दिन जटिल मस्तिष्क शल्य चिकित्सा की लेकिन उसकी स्थिति में सुधार नहीं हुआ और उन्हें बचाया नहीं जा सका।
सत्तासी वर्ष की आयु में रविवार दोपहर बाद अगरतला सरकारी मेडिकल कॉलेज और जीबीपी अस्पताल में उनका निधन हो गया।
वह अगरतला ऑल इंडिया रेडियो के निदेशक थे और प्रसार भारती में अतिरिक्त महानिदेशक के रूप में पदोन्नत हुए थे लेकिन उन्होंने त्रिपुरा में बने रहने के लिए पदोन्नति को स्वीकार नहीं किया।
श्री देववर्मा 1967 से राजनीति में थे जब त्रिपुरा उपजाती जुबा समिति (टीयूजेएस) ने त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (एडीसी) के निर्माण की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया था। वह त्रिपुरा के सबसे पुराने आदिवासी नेता थे, उन्होंने पांच दशकों में राज्य में आदिवासी राजनीति के पुनर्गठन को देखा था।
श्री देववर्मा टीटीएनसी, आईपीएफटी और आईएनपीटी जैसी पार्टियों के गठन के सूत्रधार थे। वर्ष 2009 में फिर से आईपीएफटी का गठन किया और एक अलग तिपरालैंड में पदोन्नत करने की एकल मांग उठाई, जो 2018 के विधानसभा चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बन गया।
उन्होंने पिछले विधानसभा चुनावों से पहले आईपीएफटी और भाजपा के बीच चुनावी गठबंधन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और आईपीएफटी ने 60 सदस्यों के सदन में नौ में से आठ सीटों पर जीत हासिल की थी। भाजपा द्वारा तिपरालैंड की मांग को अस्वीकार करने के तुरंत बाद दोनों दलों के बीच एक झगड़ा शुरू हो गया, जिसने श्री देववर्मा को 2019 में पिछले आम चुनाव में अलग से लड़ने के लिए मजबूर किया।
इसके बाद, सभी चुनावों में आईपीएफटी ने स्वतंत्र रूप से भाजपा प्रत्याशियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, लेकिन श्री देववर्मा ने आईपीएफटी को विभाजित करने वाले भाजपा के साथ गठबंधन को टूटने से रोक दिया। भाजपा के साथ श्री देववर्मा के जुड़ाव का विरोध करते हुए, पार्टी के तीन विधायकों ने आईपीएफटी से इस्तीफा दे दिया और शाही वंशज प्रद्योत किशोर देववर्मन की पार्टी टिपरा मोथा में शामिल हो गए।
मोथा के उदय और श्री देववर्मा की अनुपस्थिति के साथ, आईपीएफटी का आगे बढ़ने में संशय उत्पन्न हो गये हैं। पार्टी में दूसरे नंबर की कमान संभालने वाले और मत्स्य पालन और सहकारिता मंत्री प्रेम कुमार रियांग ने हालांकि, सोमवार को दोहराया कि आईपीएफटी अपनी पहचान के साथ रहेगा और पार्टी के भंग होने या किसी अन्य पार्टी के साथ विलय होने की संभावना नहीं है।
इस बीच, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजीव भट्टाचार्जी ने कहा कि आईपीएफटी-भाजपा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार का भागीदार रहा है और अभी भी यह गठबंधन मौजूद है। उन्होंने कहा,“ अभी तक, भाजपा-आईपीएफटी गठबंधन कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ आगामी विधानसभा चुनाव में एक साथ लड़ेगा। माकपा को विकास विरोधी पार्टी के रूप में मान्यता दी गई है, जो लोगों को गरीबी की ओर खींचती है तथा विभाजनकारी राजनीति करती है। कांग्रेस ने अब राज्य के हितों से समझौता करते हुए माकपा से हाथ मिला लिया है। हमें विश्वास है कि जनता उन्हें करारा जवाब देगी और विधानसभा में उनकी उपस्थिति शून्य कर देगी। ”