मोटे अनाज धरती से समाप्त न हों, इसलिए भारत में चल रहा अभियान : शिवराज
इंदौर, 13 फरवरी : मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज कहा कि पोषण से भरपूर मोटे अनाज धरती से समाप्त न हों, इसलिए भारत में अभियान चलाया जा रहा है।
श्री चौहान यहां आयोजित जी-20 समूह की कृषि कार्य समूह की बैठक को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने विभिन्न देशों की कृषि पद्धति, उत्पादों तथा मध्यप्रदेश के जैविक उत्पादों को प्रदर्शित करने वाली प्रदर्शनी का उद्घाटन कर अवलोकन किया।
बैठक को संबोधित करते हुए श्री चौहान ने कहा कि आज पूरे विश्व के लिए यह गंभीर चिंतन का विषय है कि खाद्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए हम कृषि योग्य भूमि का समुचित उपयोग भी करें और इसकी उत्पादकता बढ़ाने के लिए सम्मिलित प्रयास भी करें।
उन्होंने कहा कि भारत में खाद्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए खेती को सबसे उत्तम कार्य माना गया है। इसलिए भारत में एक बड़ी आबादी कृषि कार्य में लगी हुई है। लगातार बढ़ती जनसंख्या के कारण खाद्य सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण विषय है। दुनिया का मात्र 12 फीसदी भू-भाग ही कृषि के योग्य है। वर्ष 2030 तक हमारी खाद्यान्न की मांग 345 मिलियन टन हो जाएगी। यदि हमें दुनिया के खाद्यान्न की आवश्यकताओं को पूरा करना है, तो हमें उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ नये विचारों का स्वागत और तकनीकी का उपयोग करना होगा।
मध्यप्रदेश में कृषि संबंधित योजनाओं का जिक्र करते हुुए उन्होंने कहा कि प्रदेश में जीरो प्रतिशत की दर पर किसानों को कृषि ऋण उपलब्ध होता है। उत्पादन की लागत घटाने के लिए मध्यप्रदेश में अनेक प्रयास किए गए हैं। कृषि का विविधीकरण का प्रयत्न हो रहा है।।
फूलों-फलों की खेती, सब्जी व औषधियों की खेती के साथ ही पशुपालन, मत्स्य पालन का प्रयास किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया है। भारत के पारंपरिक मोटे अनाज ज्वार, बाजरा, कोदो, कुटकी में बहुत पोषण है। ये धरती से खत्म न हों, इसलिए भारत में अभियान चल रहा है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के मोटे अनाजों को श्री अन्न नाम दिया है।
उन्होंने कहा कि उत्पादन बढ़ाने के लिए केमिकल तथा फर्टिलाइजर के उपयोग से न केवल धरती का स्वास्थ्य, बल्कि मनुष्य का स्वास्थ्य भी खराब हो रहा है। इसलिए प्रधानमंत्री श्री मोदी ने प्राकृतिक खेती का अभियान छेड़ा है। मध्यप्रदेश जैविक खेती में नम्बर एक है। यहाँ लगभग साढ़े 17 लाख हेक्टेयर में जैविक खेती हो रही है। यहां के किसान गाय-भैंस के गोबर से बने खाद का उपयोग कर रहे हैं। मध्यप्रदेश में इस साल 60 हजार किसानों ने प्राकृतिक खेती के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है।