हथिनी वत्सला की उम्र का खुलासा कार्बन डेटिंग से होगा
पन्ना, 22 फरवरी : मध्यप्रदेश के पन्ना में सबसे बुजुर्ग हथिनी वत्सला पन्ना टाइगर रिजर्व की शान है। हथिनी वत्सला पिछले दो दशक से पर्यटकों और वन्य जीव प्रेमियों के लिए आकर्षक का केंद्र बनी हुई है।
पन्ना टाइगर रिजर्व की धरोहर बन चुकी इस हथिनी की उम्र तकरीबन 105 वर्ष बताई जा रही है, जबकि दुनिया के सबसे अधिक उम्र वाले हाथी लिन वांग (ताइवान) की 86 वर्ष की आयु में 26 फरवरी 2008 को मौत हो चुकी है। इस लिहाज से पन्ना टाइगर रिजर्व की हथिनी वत्सला मौजूदा समय पूरी दुनिया में सबसे अधिक उम्र की हाथी है, बावजूद इसके अभी तक वत्सला का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हो सका है। इसकी वजह हथिनी वत्सला का जन्म रिकॉर्ड उपलब्ध न होना है। लेकिन कार्बन डेटिंग से वत्सला की उम्र का पता चल सकता है।
हथिनी वत्सला को दो बार मौत के मुंह से बचाने वाले पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि हथिनी वत्सला की सही उम्र का पता लगाने का अब एक ही रास्ता है कि उसके एकमात्र उपलब्ध
मोलर टीथ (दाढ़) का कार्बन डेटिंग कराया जाए। इस पद्धति से वत्सला की आयु का पता चल सकता है।
डॉक्टर गुप्ता ने बताया कि जंगली हाथी की औसत उम्र 60 से 70 साल होती है, 70 वर्ष की आयु तक हाथी के दांत गिर जाते हैं। दो दशक पूर्व जब पहली बार मैंने वत्सला को देखा था, उस समय इसके दांत गिर चुके थे। हथिनी वत्सला की पूरी तरह घिस चुकी मोलर टीथ के (दाढ़) भी पिछले माह गिर गई है जो हमारे पास है। यह वत्सला का अंतिम दांत था, यदि इसका कार्बन डेटिंग कराया जाए तो हथिनी की उम्र का पता चल सकता है।
डॉक्टर गुप्ता ने बताया कि जीते जी वत्सला का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हो, इसके लिए यही एकमात्र रास्ता है कि मोलर टीथ का कार्बन डेटिंग कराया जाए।
कार्बन डेटिंग जिसे रेडियो कार्बन डेटिंग भी कहा जाता है, इसका उपयोग लकड़ी, हड्डी, चमड़ी, बाल और खून के अवशेष की उम्र अथवा कितनी पुरानी है इस बात का पता लगाने में किया जाता है। इस तकनीक की खोज वर्ष 1949 में
शिकागो यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट विलियर्ड फ्रेंक लिबी और उनके साथियों ने की थी। उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें 1960 में रसायन का नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था। डॉक्टर संजीव गुप्ता ने बताया कि मोलर टीथ भी एक प्रकार की हड्डी है, जो जन्म के समय की होती है। मोलर टीथ की कार्बन डेटिंग से वत्सला की सही उम्र का आकलन किया जा सकता है, जिसकी मान्यता भी होगी। हमने इस बाबत देश की दो प्रमुख प्रयोगशालाओं से संपर्क भी किया है।
वत्सला मूलतः केरल के नीलांबुर फॉरेस्ट डिवीजन में पली-बढ़ी है। इसका प्रारंभिक जीवन नीलांबुर वन मंडल (केरल) में वनोपज परिवहन का कार्य करते हुए व्यतीत हुआ। इस हथिनी को 1971 में केरल से होशंगाबाद मध्यप्रदेश लाया गया, उस समय वत्सला की उम्र 50 वर्ष से अधिक थी। वत्सला को वर्ष 1993 में होशंगाबाद के बोरी अभ्यारण्य से पन्ना
राष्ट्रीय उद्यान लाया गया, तभी से यह हथिनी यहां की पहचान बनी हुई है। वत्सला के साथ होशंगाबाद से महावत रमजान खान व चारा कटर मनीराम भी आए थे, जो आज भी पन्ना टाइगर रिजर्व में हथिनी वत्सला की देखरेख कर रहे हैं। महावत रमजान खान बताते हैं कि वत्सला की अधिक उम्र व सेहत को देखते हुए वर्ष 2003 में उसे रिटायर कर कार्य मुक्त कर दिया गया था। तब से किसी कार्य में उसका उपयोग नहीं किया गया। वत्सला का पाचन तंत्र भी कमजोर हो चुका है, इसलिए उसे विशेष भोजन दिया जाता है। मौजूदा समय वत्सला की दोनों आंखों में मोतियाबिंद हो जाने से उसे दिखाई भी नहीं देता, फलस्वरुप चारा कटर मनीराम उसकी सूंड अथवा कान पकड़कर जंगल में घुमाने ले जाता है। बिना सहारे के वत्सला ज्यादा दूर तक नहीं चल सकती। हाथियों के कुनबे में शामिल छोटे बच्चे भी घूमने टहलने में वत्सला की पूरी मदद करते हैं।