वैश्विक महासागर संरक्षण संधि पांचवी बार भी नहीं हुई पारित
न्यूयॉर्क, 27 अगस्त : विश्व के महासागरों और समुद्री जीवन की रक्षा के लिए वैश्विक समझौता पांचवी बार भी पारित नहींं हो सका।
संयुक्त राष्ट्र की समुद्री क़ानून संधिको पारित करने के लिए न्यूयॉर्क में दो सप्ताह से बातचीत चल रही थी, लेकिन सरकारें शर्तों पर सहमत नहीं हो सकीं। पर्यावरणविदों ने इसे ‘हाथ से निकला अवसर’ करार दिया है। इन वार्ताओं का उद्देश्य समुद्री जैव विविधता की रक्षा करना और महासागरों में होने वाले अतिक्रमण पर रोक लगाना है। जलवायु परिवर्तन और मछलियों का अधिक शिकार से 40 फीसदी तक शार्क और रे मछली विलुप्ति की कगार पर हैं। पिछले नौ साल में खतरा दोगुना हुआ है। मछलियों पर आठ साल तक हुए शोध में सामने आया है कि 2014 के इनकी विलुप्ति का खतरा 24 फीसदी था जो अब बढ़कर दोगुना हो गया है।
संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है जो विश्व के सागरों और महासागरों पर देशों के अधिकार और ज़िम्मेदारियों का निर्धारण करती है और समुद्री साधनों के प्रयोग के लिये नियमों की स्थापना करती है।संयुक्त राष्ट्र ने इस कानून को वर्ष 1982 में अपनाया था लेकिन यह नवंबर 1994 में प्रभाव में आया। उल्लेखनीय है कि उस समय यह अमेरिका की भागीदारी के बिना ही प्रभावी हुआ था। बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व समुद्र के लगभग तीन चौथाई को प्रतिनिधित्व करनेवाले अन्तरराष्ट्रीय जल के बावजूद सिर्फ 1.2 फीसदी ही संरक्षित है। संरक्षित क्षेत्रों के बाहर रहने वाले समुद्री जीवन को जलवायु परिवर्तन, मछलियों का बेतहाशा पकड़े जोन और शिपिंग यातायात के बढ़ते खतरों से गंभीर खतरा है।
रिपोर्ट के अनुसार,“ संयुक्त राष्ट्र उच्च समुद्र संधि को पारित करने के लिए न्यूयॉर्क में दो सप्ताह से बातचीत चल रही थी, लेकिन सरकारें शर्तों पर सहमत नहीं हो सकीं। पिछले एक पखवाड़े में, मूल संधि के 168 सदस्य एक साथ आए और एक नया समझौता करने का प्रयास किया। वे हालांकि ,विकासशील देशों के लिए मछली पकड़ने के अधिकार, वित्त पोषण और समर्थन के प्रमुख मुद्दों पर एक राय नहीं बना सकें।”
बीबीसी ने कहा कि इस विफलता से न केवल समुद्री प्रजातियों की रक्षा नहीं होगी बल्कि कुछ प्रजातियों को विलुप्त होने से पहले कभी नहीं खोजा जाएगा। इस साल की शुरुआत में नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा वित्त पोषित शोध में कहा गया था कि 10 से 15 फीसदी समुद्री प्रजातियां पहले से ही विलुप्त होने के खतरे में हैं।संधि नहीं पारित होने के कारण शार्क और रे मछलियों पर अत्याधिक खतरा है।
शोधकर्ताओं का कहना है, जलवायु का तापमान बढ़ने से मछलियों की इन प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा ज्यादा बढ़ता है। खासतौर पर उत्तर और पश्चिमी-मध्य भारत के समुद्र और उत्तर-पश्चिम प्रशांत महासागर में। इन क्षेत्रों में दुनियाभर की तीन चौथाई प्रजातियां पाई जाती हैं, जो खतरे में हैं।