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163 पूर्व अधिकारियों ने राजेन्द्र गौतम के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही की मांग की

नयी दिल्ली, 14 अक्टूबर : देश की प्रशासनिक, पुलिस एवं सैन्य सेवाओं के सेवानिवृत्त अधिकारियों ने उप-राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना को पत्र लिख कर दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के पूर्व मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही करने का अनुरोध किया है।

उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह और पश्चिम बंगाल के पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव एम एल मीणा सहित 163 पूर्व अधिकारियों ने इस पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं। पत्र में उन्होंने कहा है, “श्री राजेन्द्र पाल गौतम का आचरण ही निंदनीय नहीं, बल्कि वह आपराधिक रूप से भी दोषी है क्योंकि उनका बयान विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के बीच दुश्मनी, कटुता पैदा करता है और मौजूदा वैश्विक परिस्थिति में भारत को कमजोर करने एवं इसकी एकता में दरारें पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। अत: हम आपसे अनुरोध करते हैं कि आप उनके विरुद्ध आपराधिक कार्रवाई शुरू करे।”

पत्र में लिखा है कि हम भारत के नागरिक दिल्ली के आम आदमी पार्टी की सरकार में मंत्री रहे श्री गौतम के आपराधिक कुकृत्य से हतप्रभ हैं जिसमें उन्होंने एक धार्मिक कार्यक्रम में हिन्दुओं एवं देवी-देवताओं के विरुद्ध घृणास्पद भाषण से हिन्दुओं को भड़काने का कृत्य किया। श्री गौतम एक जनसेवक होने के नाते संविधान की शपथ से बंधे थे लेकिन उन्होंने इसे भूल कर लोगों को घृणा फैलाने वाली शपथ दिलायी -‘मैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश में कोई आस्था नहीं रखूंगा और न ही उनकी पूजा करुंगा। मैं राम और कृष्ण में भी कोई आस्था नहीं रखूंगा और न ही उन्हें ईश्वर मानूंगा। मैं ब्राह्मणों द्वारा किसी भी कर्मकांड की अनुमति नहीं दूंगा और मैं हिन्दुत्व की निंदा करता हूं, जो मानवता के लिए घातक है और मानवता के विकास एवं उन्नति को बाधित करती है। ”

पत्र में 74 पूर्व उच्च प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारियों और 98 पूर्व उच्च सैन्य अधिकारियों के हस्ताक्षर हैं। पत्र में लिखा गया कि श्री गौतम ने राजनीतिक विषवमन करते समय यह भुला दिया कि बुद्ध हिन्दुओं के पूज्य हैं और हिन्दू उन्हें भगवान का अवतार मान कर पूजते हैं। भगवान बुद्ध ने ब्रह्म की साधना की शिक्षा बुद्ध से ग्रहण की थी और बुद्ध ने तेविज्जा सूत्त की शिक्षा दी थी। उन्होंने पत्र में लिखा कि हम मानते हैं कि भारतीय लोकतंत्र में धर्म एवं उसका व्यवहार हर व्यक्ति का निजी विशेषाधिकार है जो किसी भी धर्म को मानने एवं अभ्यास की स्वतंत्रता देता है। अन्य धर्माें एवं उनके धार्मिक विश्वासों का आदर इसी स्वतंत्रता का अंग है। इसलिए हिन्दू अथवा किसी अन्य धर्म की निंदा या भावनाओं को आहत करने का कोई कारण नहीं है।

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