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वैष्णव ने हिंडाल्को द्वारा विकसित एल्युमीनियम फ्रेट रेक को किया भुवनेश्वर से रवाना

भुवनेश्वर 16 अक्टूबर : रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एल्युमीनियम बनाने वाली प्रमुख कंपनी हिंडाल्को द्वारा विकसित देश के पहले पूर्ण एल्यूमीनियम फ्रेट रेल रेक को हरी झंडी दिखा कर आज यहां से रवाना किया।

कंपनी ने यहां जारी बयान में कहा कि इससे फ्रेट परिवहन के आधुनिकीकरण की भारत की महत्वाकांक्षी योजना को गति देने और भारतीय रेलवे द्वारा बड़े पैमाने पर कार्बन फुटप्रिंट में कमी लाने में मदद मिलेगी। ये चमचमाते रेक स्टील के मौजूदा रेक से 180 टन तक हल्के हैं और 5-10 प्रतिशत ज्यादा सामानों की ढुलाई में सक्षम हैं। ये कम ऊर्जा की खपत करते हैं और इनसे रोलिंग स्टॉक एवं रेल अपेक्षाकृत रूप से लगभग नगण्य रूप से घिसता है।

ओडिशा के लपंगा स्थित हिंडाल्को के आदित्य स्मेल्टर के लिए कोयले की ढुलाई करने वाले 61 डिब्बों की नई रेक को हरी झंडी दिखाने के मौके पर श्री वैष्णव ने कहा, “यह देश और स्वदेशीकरण से जुड़े हमारे अभियान के लिए गौरव का पल है।” उन्होंने कहा कि 2026 तक 2,528 मिलियन टन माल ढुलाई के लिए करीब 70,000 अतिरिक्त वैगन की आवश्यकता होगी। तेजी से बढ़ते ट्रेड और बिजनेस को सपोर्ट करने के लिए ये जरूरी होगा।

उन्होंने कहा, “ इन एल्युमीनियम वैगन से सामान्य वैगन की तुलना में 10 प्रतिशत से अधिक सामानों की ढुलाई के हमारे लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही हरित एवं दक्ष रेलवे नेटवर्क तैयार करने के हमारे लक्ष्य के अनुरूप कार्बन फुटप्रिंट में कमी लाने में मदद मिलेगी।”

खास तौर पर कोयले की ढुलाई के लिए डिजाइन किए गए बॉटम डिस्चार्ज एल्यूमीनियम फ्रेट वैगन से कार्बन फुटप्रिंट में बहुत अधिक कमी लाने में मदद मिलेगी। वैगन के वजन में हर 100 किलोग्राम की कमी के साथ लाइफटाइम में करीब 8-10 टन कार्बन डाई-ऑक्साइड में कमी लाने में मदद मिलती है। इस तरह एक रेक के जरिए उसके पूरे लाइफटाइम में 14,500 टन कार्बन डाई-ऑक्साइड की बचत की जा सकती है।

रेलवे आने वाले वर्षों में एक लाख से अधिक डिब्बे लगाने की योजना पर काम कर रहा है। ऐसे में साल भर में कार्बन डाई-ऑक्साइड में 25 लाख टन से अधिक की कमी लाई जा सकती है। करीब 15-20 फीसदी एल्यूमीनियम डिब्बों के इस्तेमाल से देश के टिकाऊ विकास के लक्ष्य की दिशा में उल्लेखनीय योगदान दिया जा सकता है।

हिंडाल्को इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक सतीश पई ने कहा, “भारत के पहले एल्यूमीनियम फ्रेट रेक का लॉन्च राष्ट्र निर्माण के लिए स्मार्ट और टिकाऊ समाधान पेश करने की हमारी क्षमताओं एवं प्रतिबद्धता को दिखाता है। हिंडाल्को भारतीय रेलवे के लॉजिस्टिक्स को अधिक दक्ष बनाने और आत्मनिर्भर भारत के विजन में अधिक योगदान करने को लेकर सर्वश्रेष्ठ वैश्विक प्रौद्योगिकी एवं स्थानीय संसाधनों को एकसाथ लाने को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है।”

आरडीएसओ द्वारा स्वीकृत डिजाइन के आधार पर बेस्को द्वारा तैयार नई पीढ़ी के डिब्बों का निर्माण काफी अधिक मजबूत एल्यूमीनियम अलॉय प्लेट एवं एक्स्ट्रुशन द्वारा किया गया है, जिसका निर्माण हिंडाल्को के हीराकुड, ओडिशा स्थित अत्याधुनिक रोलिंग फैसिलिटी में किया गया है और उत्तर प्रदेश के रेणुकूट स्थित कंपनी के संयंत्र में ग्लोबल टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के साथ एक्स्ट्रूशन हुआ है। ये पूरी तरह एल्यूमीनियम से बने रेक 19 प्रतिशत ज्यादा पेलोड टू टेयर वेट रेशियो की पेशकश करते हैं, जिसका रेलवे की लॉजिस्टिक एवं ऑपरेशनल दक्षता पर काफी अधिक बदलाव डालने वाला असर देखने को मिल सकता है.

हिंडाल्को हाई-स्पीड पैसेंजर ट्रेन के लिए भी एल्यूमीनियम के कोच के निर्माण में हिस्सा लेने की योजना बना रही है। अमेरिका, यूरोप और जापान जैसे देशों में एल्यूमीनियम ट्रेनों की हिस्सेदारी बहुत अधिक होती है। इसकी वजह ये है कि एल्यूमीनियम के कोच स्लिक होते हैं एवं इनका डिजाइन, एयरोडाइनेमिक होता है। साथ ही ये अधिक रफ्तार में पटरी से उतरे बिना झुकाव में सक्षम होते हैं। अधिक टिकाऊ होने और पैसेंजर सेफ्टी को ध्यान में रखकर एल्यूमीनियम मेट्रो ट्रेनों के लिए सबसे पसंदीदा विकल्प है। इसकी वजह यह है कि भिड़ंत की स्थिति में इसकी क्रैश अब्जॉर्प्शन क्षमता बेहतर होती है। भारतीय रेलवे एल्यूमीनियम बॉडी वाले वंदे भारत ट्रेन सेट के निर्माण की योजना का ऐलान पहले ही कर चुका है। हिंडाल्को भारत में यह क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध है और भारत में अनुकूल इकोसिस्टम विकसित करने के लिए वैश्विक साझीदारों के साथ बातचीत कर रहा है।

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