भारत की पुरातन परंपरा, दर्शन, सामर्थ्य विश्व के लिए बड़ी उम्मीद बन रहा हैः मोदी
नयी दिल्ली 26 अकक्टूबर : भारत की पुरातन परंपरा, भारत का दर्शन और आज के भारत का सामर्थ्य, ये विश्व के लिए बड़ी उम्मीद बन रहा है।
ये बातें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को आचार्य पूज्य श्री विजय वल्लभ सुरीश्वर जी की 150वीं जन्म जयंती के मौके पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही। दुनियाभर में जैन मताबलंबियों और भारत की संत परंपरा के वाहक सभी आस्थावान लोगों को नमन करते हुए उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम में अनेक पूज्य संतगण मौजूद हैं। आप सभी के दर्शन, आशीर्वाद और सानिध्य का सौभाग्य मुझे अनेक बार मिला है। गुजरात में था तो वडोदरा और छोटा उदयपुर के कंवाट गांव में भी मुझे संतवाणी सुनने का अवसर मिला था। जब आचार्य पूज्य श्री विजय वल्लभ सुरीश्वर जी की सार्द्धशती यानी 150वीं जन्म जयंती की शुरुआत हुई थी, तब मुझे आचार्य जी महाराज की प्रतिमा का अनावरण करने का सौभाग्य मिला था। आज एक बार फिर मैं टेक्नोलॉजी के माध्यम से आप संतों के बीच हूं।
आज आचार्य श्री विजय वल्लभ सुरीश्वर जी को समर्पित स्मारक डाक टिकट और सिक्के का विमोचन हुआ है। इसलिए मेरे लिए ये अवसर दोहरी खुशी लेकर आया है। स्मारक डाक टिकट और सिक्के का विमोचन एक बहुत महत्वपूर्ण प्रयास है, उस आध्यात्मिक चेतना से जन-जन को जोड़ने का, जो पूज्य आचार्य जी ने अपने जीवनभर कर्म के द्वारा वाणी के द्वारा और उनके दर्शन में हमेशा प्रतिबिंबित रहा।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि दो वर्ष तक चले इन समारोहों का अब समापन हो रहा है। इस दौरान आस्था, आध्यात्म, राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रशक्ति को बढ़ाने का जो अभियान आपने चलाया, वह प्रशंसनीय है। संतजन, आज दुनिया युद्ध, आतंक और हिंसा के संकट को अनुभव कर रही है। इस कुचक्र से बाहर निकलने के लिए प्रेरणा और प्रोत्साहन पूरी दुनिया तलाश कर रही है। ऐसे में भारत की पुरातन परंपरा, भारत का दर्शन और आज के भारत का सामर्थ्य, ये विश्व के लिए बड़ी उम्मीद बन रहा है। आचार्य श्री विजय वल्लभ सुरीश्वर महाराज का दिखाया रास्ता, जैन गुरुओं की सीख, इन वैश्विक संकटों का समाधान है। अहिंसा, अनेकांत और अपरिग्रह को जिस प्रकार आचार्य जी ने जीया और इनके प्रति जन-जन में विश्वास फैलाने का निरंतर प्रयास किया, वह आज भी हम सभी को प्रेरित करता है। शांति और सौहार्द के लिए उनका आग्रह विभाजन की विभीषिका के दौरान भी स्पष्ट रूप से दिखा। भारत विभाजन के कारण आचार्य श्री विजय वल्लभ सुरीश्वर महाराज को चतुर्मास का व्रत भी तोड़ना पड़ा था।
श्री मोदी ने कहा कि आचार्यगण ने अपरिग्रह को जो रास्ता बताया, आजादी के आंदोलन में पूज्य महात्मा गांधी ने भी उसे अपनाया। अपरिग्रह केवल त्याग नहीं है, बल्कि हर प्रकार के मोह पर नियंत्रण रखना भी अपरिग्रह है। आचार्य श्री विजय वल्लभ सुरीश्वर महाराज ने दिखाया है कि अपनी परंपरा, अपनी संस्कृति के लिए ईमानदारी से कार्य करते हुए सबके कल्याण के लिए बेहतर काम किया जा सकता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि गच्छाधिपति जैनाचार्य श्री विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी बार-बार इसका उल्लेख करते हैं कि गुजरात ने 2-2 वल्लभ देश को दिए हैं। ये भी संयोग है कि आज आचार्य जी की 150वीं जन्म जयंती के समारोह पूर्ण हो रहे हैं और कुछ दिन बाद ही हम सरदार पटेल की जन्म जयंती, राष्ट्रीय एकता दिवस मनाने वाले हैं। आज ‘स्टैच्यू ऑफ पीस’ संतों की सबसे बड़ी प्रतिमा में से एक है और स्टैच्यू ऑफ यूनिटी दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है। उन्होंने कहा कि ये सिर्फ ऊंची प्रतिमाएं भर नहीं हैं, बल्कि ये एक भारत, श्रेष्ठ भारत की भी सबसे बड़े प्रतीक हैं। सरदार साहब ने टुकड़ों में बंटे, रियासतों में बंटे, भारत को जोड़ा था। आचार्य जी ने देश के अलग-अलग हिस्सों में घूमकर भारत की एकता और अखंडता को, भारत की संस्कृति को सशक्त किया। देश की आजादी के लिए हुए जो आंदोलन हुए उस दौर में भी उन्होंने कोटि-कोटि स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर काम किया।
श्री मोदी ने कहा कि आचार्य जी का कहना था कि देश की समृद्धि, आर्थिक समृद्धि पर निर्भर है। स्वदेशी अपनाकर भारत की कला, भारत की संस्कृति और भारत की सभ्यता को जीवित रख सकते हैं’। उन्होंने सिखाया है कि धार्मिक परंपरा और स्वदेशी को कैसे एक साथ बढ़ावा दिया जा सकता है। उनके वस्त्र धवल हुआ करते थे, लेकिन साथ ही वे वस्त्र खादी के ही होते थे। इसे उन्होंने आजीवन अपनाया। स्वदेशी और स्वाबलंबन का ऐसा संदेश आज भी, आज़ादी के अमृतकाल में भी बहुत प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत के लिए ये प्रगति का मूल मंत्र है।
प्रधानमंत्री ने लोकल के लिए वोकल की वकालत करते हुए कहा कि भारत के लोगों के परिश्रम से बने सामान को मान-सम्मान मिले, इसके लिए भी आपकी तरफ से चेतना अभियान बहुत बड़ी राष्ट्रसेवा हैं। आपके अधिकांश अनुयायी व्यापार-कारोबार से जुड़े हैं। उनके द्वारा लिया गया ये प्रण कि वे भारत में बनी वस्तुओं का ही व्यापार करेंगे, खरीद-बिक्री करेंगे, भारत में बने सामान ही उपयोग करेंगे, महाराज साहिब को ये बहुत बड़ी श्रद्धांजलि होगी। सबका प्रयास, सबके लिए, पूरे राष्ट्र के लिए हो, प्रगति का यही पथ प्रदर्शन आचार्य श्री ने भी हमें दिखाया है। इसी पथ को हम प्रशस्त करते रहें।