स्वामी चिदानंद ने अमेरिका से गणतंत्र दिवस पर किया देश को नमन
कैलिफोर्निया/देहरादून 27 जनवरी : उत्तराखंड के देहरादून जनपद अन्तर्गत, ऋषिकेश में परमार्थ निकेतन के माध्यम से देश विदेश में योगादि की परंपराओं का ध्वज पताका फहरा रहे स्वामी चिदानंद सरस्वती ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर अमेरिका के कैलिफोर्निया की धरती से अपने देश की पुण्यभूमि को नमन किया।
स्वामी चिदानंद ने गणतंत्र दिवस और बंसत पंचमी की शुभकामनायें देते हुये कहा कि भारत की पुण्यभूमि को नमन! भारत की माटी हमारा गौरव है। अमृत महोत्सव के अवसर पर आयोजित यह अमृत उत्सव अतुलनीय और अद्भुत है जहां पर श्रमयोगियों के श्रम का सम्मान किया गया। उन्होंने कहा कि भारत निरंतर विकास पथ पर अग्रसर हो रहा है। हमने अपने 74 वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर लोकल फाॅर वोकल का अद्भुत दृश्य देखा। हमने पहली बार अपने आयुधों से सलामी दी जो भारत के इतिहास में स्वर्णिम हस्ताक्षर की तरह याद किया जायेगा।
स्वामी जी ने बसंत पंचमी की शुभकामनायें देते हुये कहा कि बसंत पंचमी प्रकृति को समर्पित पर्व है। बसंत पंचमी के आते ही प्रकृति में फूल खिलने लगते है और नई फसलों का आगमन होने लगता है। बसंत के अवसर पर प्रकृति की खूबसूरती अपने चरम पर होती है उसी खूबसूरती को बनाये रखने के लिये हम सभी मिलकर प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण हेतु अपना योगदान प्रदान करें।
परमाध्यक्ष ने ज्ञान और बुद्धि की देवी सरस्वती जी का और बंसत पंचमी के महत्व को समझाते हुये कहा कि ‘या कुन्देन्दु-तुषार-हार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता, या वीणा-वर दण्डमण्डित करा या श्वेत पद्मासना। या ब्रह्मा-च्युत शंकर-प्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता, सा माँ पातु सरस्वती भगवती निः शेषजाडयापहा।’
अर्थात् ‘देवी सरस्वती शीतल चंद्रमा की किरणों से गिरती हुई ओस की बूंदों के श्वेत हार से सुसज्जित, शुभ वस्त्रों से आवृत, हाथों में वीणा धारण किये हुए वर मुद्रा में अति श्वेत कमल रूपी आसन पर विराजमान हैं। उन्होंने कहा कि शारदा देवी भगवान ब्रह्मा व शंकर जी अच्युत आदि देवताओं द्वारा भी सदा ही वन्दनीय हैं। ऐसी देवी सरस्वती जी हमारी बुद्धि की जड़ता को नष्ट करके हमें तीक्ष्ण बुद्धि एवं कुशाग्र मेधा से युक्त करें। माँ सरस्वती सभी के जीवन में ज्ञान, उल्लास, उमंग, दिव्यता और शान्ति की दिव्य तरंगों का संचार करें।