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शिक्षा एवं संस्कृति में बड़ी है जनभागीदारी : मोदी

नयी दिल्ली, 30 अप्रैल : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कहा कि शिक्षा एवं संस्कृति के क्षेत्र से जुड़े मुद्दों को उन्होंने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कई बार उठाया है और उन्हें इस बात की प्रसन्नता है कि इन क्षेत्रों में जनभागीदारी बढ़ने से क्रांतिकारी बदलाव आए हैं।

श्री मोदी ने रेडियो पर प्रसारित अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 100वीं कड़ी में कहा कि उन्होंने मन की बात के ज़रिए पहले कई बार शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में काम करने वाले कई लोगों के कार्यों को सराहा है। इस क्षेत्र में भारत में हो रहे कार्यों की विश्व स्तर पर चर्चा की जा रही है और खुद यूनेस्को की महानिदेशक औद्रे ऑजुले ने भी इस बारे में उनसे बातचीत करते हुए खुशी जाहिर की है। उनका कहना था कि इन दोनों क्षेत्रों में चर्चा ‘मन की बात’ के पसंदीदा विषय रहे हैं।

उन्होंने कहा , “बात शिक्षा की हो या संस्कृति की, उसके संरक्षण की बात हो या संवर्धन की, भारत की यह प्राचीन परंपरा रही है। इस दिशा में आज देश जो काम कर रहा है, वो वाकई बहुत सराहनीय है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति हो या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का विकल्प हो, शिक्षा में तकनीकी समावेश हो, आपको ऐसे अनेक प्रयास देखने को मिलेंगे। वर्षों पहले गुजरात में बेहतर शिक्षा देने और स्कूल छोड़ने की दर को कम करने के लिए ‘गुणोत्सव और शाला प्रवेशोत्सव’ जैसे कार्यक्रम जनभागीदारी की एक अद्भुत मिसाल बन गए थे। ‘मन की बात’ में हमने ऐसे कितने ही लोगों के प्रयासों को प्रमुखता से लिया है, जो नि:स्वार्थ भाव से शिक्षा के लिए काम कर रहे हैं।”

प्रधानमंत्री ने कहा , “ इसी संदर्भ में इस कार्यक्रम में हमने एक बार ओडिशा में ठेले पर चाय बेचने वाले स्वर्गीय डी. प्रकाश राव जी के बारे में चर्चा की थी, जो गरीब बच्चों को पढ़ाने के मिशन में लगे हुए थे। झारखण्ड के गांवों में डिजिटल लाइब्रेरी चलाने वाले संजय कश्यप जी हों, कोविड के दौरान ई लर्निंग के जरिये कई बच्चों की मदद करने वाली हेमलता एन.के. जी हों, ऐसे अनेक शिक्षकों के उदाहरण हमने ‘मन की बात’ में लिए हैं। हमने सांस्कृतिक संरक्षण के प्रयासों को भी ‘मन की बात’ में लगातार जगह दी है।”

प्रधानमंत्री ने कहा “लक्षदीप का कुम्मील ब्रदर्स चेलेंजर्स क्लब हो या कर्नाटका के ‘क्वेमश्री’ जी ‘कला चेतना’ जैसे मंच हो, देश के कोने-कोने से लोगों ने मुझे चिट्ठी लिखकर ऐसे उदाहरण भेजे हैं। हमने उन तीन प्रतियोगिताओ को लेकर भी बात की थी जो देशभक्ति पर ‘गीत’ ‘लोरी’ और ‘रंगोली’ से जुड़े थे। आपको ध्यान होगा, एक बार हमने देश भर के स्टोरी टेलर्स से कहानियों के माध्यम से शिक्षा की भारतीय विधाओं पर चर्चा की थी। मेरा अटूट विश्वास है कि सामूहिक प्रयास से बड़े से बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। इस साल हम जहाँ आजादी के अमृतकाल में आगे बढ़ रहे हैं, वहीं जी-20 की अध्यक्षता भी कर रहे हैं। यह भी एक वजह है कि शिक्षा के साथ-साथ वैश्विक सांस्कृतिक विविधता को समृद्ध करने के लिये हमारा संकल्प और मजबूत हुआ है।”

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