खपत नहीं फिर भी यूरिया-डीएपी की मांग
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कोटा,03 नवम्बर : राजस्थान के कोटा संभाग में अगले कृषि क्षेत्र रबी के लिए जमीनी स्तर पर यूरिया-डीएपी खाद की आवश्यकता नहीं होने से पहले ही इन दिनों उर्वरकों को लेकर मारामारी शुरू हो गई है।
कई किसानों और किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से बातचीत के बाद यह तथ्य सामने आया है कि बुवाई का काम शुरुआती चरण में ही है लेकिन इसके बावजूद किसानों की मांग के कारण बाजार में उर्वरक की किल्लत हो गई है तो इसकी बड़ी वजह जरूरत के समय उर्वरकों की उपलब्धता के बारे में राजनेताओं के वायदों के प्रति किसानों में अविश्वास की भावना बताई जाती है। किसान राजनेताओं से नहीं बल्कि प्रशासन से समय पर उर्वरकों की उपलब्धता के बारे में ठोस आश्वासन चाहता है। हालांकि राज्य सरकार की ओर से यह दावा किया जा रहा है कि रबी के कृषि सत्र के दौरान किसानों को यूरिया-डीएपी की कमी नहीं आने दी जाएगी। किसानों को रबी की फसल के लिए उनकी जरूरत के मुताबिक उर्वरक उपलब्ध करवाए जाएगा। पिछले अक्टूबर माह में ही राज्य सरकार ने किसानों को 1.67 लाख मैट्रिक टन यूरिया और 1.09 लाख मैट्रिक टन डीएपी उपलब्ध करवाया है, जबकि राज्य में अभी 1.31 लाख मैट्रिक टन यूरिया और 56 हजार मीट्रिक टन डीएपी उपलब्ध है।
इसके विपरीत किसानों की शिकायत है कि उन्हें डीलरों-मार्केटिंग सोसायटी पर्याप्त मात्रा में यूरिया और डीएपी उपलब्ध नहीं हो पा रहे है।
इस बारे में बूंदी जिले के केशवरायपाटन क्षेत्र के भिया गांव के जागरूक किसान जगदीश कुमार ने बताया कि कोटा और बूंदी जिले के नहरी क्षेत्र में किसानों के लिए चंबल की दांई और बांई मुख्य नहर से पानी छोड़ा जा चुका है लेकिन अभी किसानों को यूरिया की आवश्यकता नहीं है। अभी तो सरसों की बुवाई का काम ही चल रहा है और उसके कुछ दिन और चलने रहने की उम्मीद है।
ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वोदयी विचारधारा के प्रचार-प्रसार से जुड़े राष्ट्रीय युवा संगठन के प्रदेश संयोजक जगदीश कुमार का कहना है कि दरअसल जरूरत नहीं होने के बावजूद बाजार में यूरिया-डीएपी की मांग की बड़ी वजह सरकार और राजनेताओं के प्रति अविश्वास की भावना है। किसानों के मन में यह बात अच्छे से बैठ गई है कि अपने निहित स्वार्थों के चलते राजनेता यूरिया-डीएपी के उपलब्ध करवाने के वायदे कर लेते हैं जो बाद में झूठे साबित होते है क्योंकि जब जरूरत होती है तो किसानों को पर्याप्त खाद नहीं मिल पाता। घंटों कतार में खड़े रहना पड़ता है और कई बार तो तब भी पुलिस की लाठियों के अलावा कुछ हासिल नहीं होता।