राजस्थान

जनप्रतिनिधि जनहित के मुद्दों पर संवेदनशील होकर करे विचार-मिश्र

जयपुर, 12 जनवरी : राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने संसद और विधानसभाओं को लोकतंत्र के मंदिर बताते हुए कहा है कि जनप्रतिनिधियों को यहां राजनीति से ऊपर उठकर जनहित के मुद्दों पर संवेदनशील होकर विचार करना चाहिए।

श्री मिश्र गुरुवार को राजस्थान विधानसभा में पीठासीन अधिकारियों के अखिल भारतीय सम्मेलन के समापन सत्र को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में पीठासीन अधिकारियों की महती भूमिका होती है और वह विधानमण्डल सदस्यों की शक्तियों और विशेषाधिकारों का एक तरह से अभिभावक भी होता है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को सशक्त करने के लिए पीठासीन अधिकारी अपनी प्रभावी भूमिका निभाएं। उन्होंने कहा कि सदन का अध्यक्ष सदन के कामकाज से संबंधित नियमों का अंतिम व्याख्याकार होता है।

उन्होंने विधानसभा में बैठकों की संख्या कम होने पर चिंता जताते हुए कहा कि सदस्य जनता से जुड़े मुद्दों पर पूरी तैयारी के साथ सदन में प्रभावी चर्चा करें। उन्होंने कहा कि विधायक सदन में महत्वपूर्ण विषयों पर होने वाली बहसों के दौरान अधिकाधिक उपस्थित रहें। उन्होंने प्राइवेट मेम्बर बिल को भी अधिकाधिक बढ़ावा दिए जाने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि सदनों में संसदीय कार्यवाही से संबंधित प्रमुख निर्णयों से जुड़ी शोध सामग्री प्रदान करने की त्वरित व्यवस्था विकसित होनी चाहिए।

श्री मिश्र ने कहा कि राज्यपाल कोई व्यक्ति नहीं है, वह संवैधानिक संस्था है और उसे जब संवैधानिक आधार पर यह संतुष्टि हो जाती है कि अध्यादेश औचित्यपूर्ण है तभी वह उसे स्वीकृति प्रदान करता है।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि जी-20 में भारत की अध्यक्षता हम सभी का सौभाग्य है। उन्होंने कहा कि सभी विधायी संस्थाओं को अपने यहां बेहतर कानून बनाने का कार्य करना चाहिए। विधायी संस्थाओं में नियमों, प्रक्रियाओं की समीक्षा की जाए। उन्होंने लोकसभा द्वारा स्वस्थ संसदीय परम्पराओं के लिए किए जा रहे प्रयासों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि प्रयास किया जाएगा कि देशभर में विधायी संस्थाओं में आचरण, नियम-प्रक्रियाओ, पंरपराओं में एकरूपता हो। उन्होंने संसदीय समितियों में दल से ऊपर उठकर लोकतंत्र को सशक्त करने के लिए प्रयास किए जाने का आह्वान किया।

श्री बिड़ला ने कहा कि विधान सभाएं अपने-अपने राज्यों में आम जन की सतत भगीदारी सुनिश्चित करें। उन्होंने कहा कि कैसे लोकतांत्रिक संस्थाएं आदर्श बनें, कैसे दुनियाभर की विधायी संस्थाएं हमारे लोकतंत्र से प्रेरणा ले-इसके लिए भी सभी मिलकर कार्य करें।
राज्यसभा के उप सभापति डॉ. हरवंश ने विधायी संस्थाओं की साख बढ़ाने के लिए कार्य करने पर जोर देते हुए महात्मा गांधी के आत्मानुशासन को विशेष रूप से याद किया। उन्होंने कहा विधायी संस्थाओं द्वारा कानून बनाना ही निदान नहीं है। प्रगति और विकास सतत साधना है, इसलिए सदन में गंभीर चर्चा और बहस का माहौल बने। उन्होंने विधायकों को पर्याप्त होम वर्क कर आने, प्रश्नों को तर्क सहित प्रस्तुत करने और मर्यादा के आचरण के साथ आत्मानुशासन अपनाने का आह्वान किया।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि प्रदेश में नागरिकों के स्वास्थ्य को दृष्टिगत रखते हुए चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना लागू की गई है। उन्होंने कहा कि पूरे देश की जनता के लिए स्वास्थ्य का अधिकार लागू कर इस तरह की योजना लाई जानी चाहिए। उन्होंने हर व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से देशभर में सामाजिक सुरक्षा कानून लाने का सुझाव भी दिया। उन्होंने कहा कि प्रदेश में राज्य सरकार ने सोच-विचार कर मानवीय दृष्टिकोण के आधार पर नई पेंशन योजना के स्थान पर पुरानी पेंशन योजना लागू की है। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों के हित को ध्यान में रखते हुए देश में एवं अन्य राज्यों में भी पुरानी पेंशन योजना लागू की जानी चाहि।

विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सी.पी. जोशी ने कहा कि राजस्थान का संसदीय परम्पराओं का गौरवशाली इतिहास रहा है। उन्होंने अपने सम्बोधन में विधायिका के प्रभावी संचालन की दृष्टि से महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने सम्मेलन में देशभर से आए पीठासीन अधिकारियों का आभार भी व्यक्त किया।
प्रतिपक्ष के नेता गुलाब चन्द कटारिया ने अपने सम्बोधन में विधायी समितियों के कार्य को और बेहतर बनाए जाने पर बल दिया। इस अवसर पर देश की विभिन्न विधानसभाओं के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, विधायक और अधिकारी मौजूद थे।

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