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लोकतंत्र, स्वतंत्रता पर वैश्विक सूचकांक प्रकाशित करने को भारत कि स्वतंत्र संस्थाओं को प्रोत्साहित करने की सिफारिश

नई दिल्ली, 22 नवंबर : प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने लोकतंत्र और स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर वैश्विक धारणा पर आधारित कुछ सूचकांकों में भारत को निम्न कोटि में दर्शाए जाने को लेकर मंगलवार को एक परिचर्चा पत्र जारी किया जिसमें इन सूचकांकों को तैयार करने के तौर तरीके और इनमें पूछे जाने वाले प्रश्न पर सवाल खड़ा किया है।

इस परिचर्चा पत्र में सिफारिश की गई है कि भारत के स्वतंत्र शोध संस्थानों को भी दुनिया के बारे में धारणा आधारित या भाव परक रिपोर्ट प्रकाशित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि पश्चिमी संगठनों का इस क्षेत्र में अधिक एकाधिकार समाप्त हो सके।

“व्हाय इंडिया डज पुअरली आन ग्लोबल परसेप्शन इंडिसी” शीर्षक यह रिपोर्ट प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सानयाल और आकांक्षा अरोड़ा ने तैयार की है। पीएमईसी ने इस परिचर्चा पत्र के बारे में एक साथ कई ट्वीट करते हुए कहा है कि भाव परक इन वैश्विक रिपोर्टों और सूचकांकों में के तैयार करने की पद्धति अत्यंत आपत्तिजनक है। इन सूचकांकों को तैयार करने के लिए जो प्रश्न उपयोग में लाए जाते हैं वह सभी देशों में समान रूप से लोकतंत्र की स्थिति मापने का उचित पैमाना नहीं हो सकते।

इसमें कहा गया है कि हाल के वर्षों में लोकतंत्र, स्वतंत्रता और ऐसे अन्य मुद्दों पर व्यक्तिगत सोच पर आधारित सूचकांकों में भारत की रैंकिंग गिरी है। इसमें कहा गया है कि इन रिपोर्टों को तैयार करने के लिए अपनाई जाने वाली पद्धति उचित नहीं है और इसमें पूछे जाने वाले सवाल भी सभी देशों में लोकतंत्र की स्थिति मापने का सही पैमाना नहीं कहे जा सकते हैं।इस परिचर्चा पत्र में तीन सूचकांकों – फ्रीडम इन दी वर्ल्ड इंडेक्स , वी-डेम इनडिसज और दी इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट की ईआईयू डेमोक्रेसी इंडेक्स का विश्लेषण किया गया है ।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने विश्लेषण रिपोर्ट आधार पर कहा है कि फ्रीडम इन द वर्ल्ड इंडेक्स और वी-डेम सूचकांक में आज भारत को उसी स्थान पर रखा गया है जिस स्थान पर 1970 के दशक में इमरजेंसी के दौरान रखा गया था। यही नहीं भारत को उत्तरी साइप्रस जैसे देशों से भी नीचे जगह दी गई है, निश्चित रूप से यह विश्वसनीय नहीं हो सकता। इसमें यह भी कहा गया है कि व्यक्तिगत सोच पर आधारित इन सूचकांकों में की पद्धति को लेकर गंभीर समस्याएं हैं। इसमें पहली सबसे बड़ी आपत्ती यह है कि ये मुख्य रूप से गुमनाम विशेषज्ञों के एक सूक्ष्म समूह की सोच पर आधारित हैं।

दूसरी आपत्ति इनमें पूछे जाने वाले प्रश्नों को लेकर है। इन में पूछे जाने वाले प्रश्न भाव परक होते हैं जिनका दुनियाभर के देशों को तो छोड़िए ,अकेले किसी एक देश के विषय में ठोस वस्तुनिष्ठ जवाब नहीं मिल सकता ।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ ऐसे सवाल हैं जिनको इन सूचकांकों के लिए पूछा जाना ही चाहिए, पर वे छोड़ दिए जाते हैं। इसी तरह कुछ सवाल सभी देशों में लोकतंत्र की माप का समुचित पैमाना नहीं हो सकते।

परिचर्चा पत्र में कहा गया है कि चूंकि इन सूचकांकों को विश्व में राजकाज की स्थिति के संकेत की रिपोर्ट – द वर्ल्ड गवर्नेंस इंडिकेटर्स को तैयार करने में शामिल किया जाता है इसलिए विश्व बैंक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन सूचकांकों को तैयार करने वाले संस्थान और अधिक पारदर्शिता और उत्तरदायित्व का अनुपालन करें।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके साथ ही स्वतंत्र भारतीय शोध संस्थानों को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे दुनिया के लिए इसी तरह के सूचकांक जारी करें ताकि पश्चिमी देशों के मुट्ठी भर संस्थानों का इस चित्र में एकाधिकार तोड़ा जा सके।

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