झांसी के मुरली मनोहर मंदिर में राधा-कृष्ण संग रूकमणी भी हैं विराजमान
झांसी 17 अगस्त : उत्तर प्रदेश की वीरांगना नगरी झांसी में भगवान कृष्ण का एक ऐसा मंदिर मौजूद है जो कहा जाता है कि संभवत: देश में नहीं बल्कि पूरी दुनिया में एकमात्र कृष्ण मंदिर है जिसके गर्भगृह में राधा-कृष्ण के साथ रूकमणी भी विराजमान है। यह मंदिर यहां “ मुरली मनोहर मंदिर ” के नाम से जाता जाता है और इसी विशिष्टता के कारण जन्माष्टमी के अवसर पर यहां दूर दूर से भक्तों का आगमन होता है।
मंदिर के पंडित वसंत विष्णु गोवलकर ने यूनीवार्ता के साथ बुधवार को विशेष बातचीत में बताया कि उनका परिवार 1785 में मंदिर की स्थापना के समय से ही लगातार सेवा देता आ रहा है। मंदिर को महारानी लक्ष्मीबाई की सास ने बनवाया था और मंदिर में मूर्ति की स्थापना 1785 में हुई थी। इस मंदिर को महारानी लक्ष्मीबाई के मायके के रूप में भी जाना जाता है और इस कारण महारानी का इस मंदिर से विशेष लगाव भी रहा था।
प़ं गोवलकर ने बताया कि गंगाधर राव की आयु 27 साल होने के बाद भी उनका विवाह नहीं हो पा रहा था तब उनकी माता जी ने प़ं गोवलकर के पड़बाबा और राजपुरोहित रामचंद्र राव प्रथम पर दबाव डाला कि किसी मराठी परिवार में गंगाधर राव के रिश्ते की बात चलाएं । इसके बाद राजपुरोहित ने अपने साड़ू भाई मोरेपंत तांबे की पुत्री के विषय में उनसे चर्चा की और आखिरकार यह विवाह संपन्न हुआ। मोरेपंत तांबे उनकी पत्नी के देहांत के बाद इसी मंदिर में रहने चले आये। मंदिर के ऊपरी तल पर बने एक बड़े से कक्ष में मोरेपंत रहतेे थे और महारानी अकसर भगवान कृष्ण के दर्शन और पिता से मुलाकात करने के लिए मंदिर में आती थीं । इसी कारण महारानी की ससुराल झांसी में उनका मायका भी था जो इसी मंदिर में था। यह भी कहा जाता है कि रानी महल से मंदिर आने जाने के लिए एक गुप्त रास्ता भी बनाया गया था।
लगभग 240 साल पुराने मंदिर में राधा-कृष्ण के साथ रूकमणी की प्रतिमा होने पर प़ं गोवलकर ने बताया कि इस मंदिर में मूर्तियों के माध्यम से उत्तर और दक्षिण का समावेश किया गया है । उत्तर भारत में राधा रानी का वर्चस्व है जबकि दक्षिण मे रूकमणी की महत्ता है लेकिन इस मंदिर में उत्तर और दक्षिण का सामंजस्य स्थापित करते हुए तीनों की प्रतिमाओं को लगाया गया है और यह इस मंदिर को एक अनूठी विशेषता प्रदान करता है। कृष्ण की प्रतिमा के दाहिनी ओर राधा और बायीं ओर रूकमणी की प्रतिमाओं को स्थापित किया गया है। प्रतिमाओं में राधा की प्रतिमा को रूकमणी की प्रतिमा से ऊंचा स्थान दिया गया है। इस मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि इसमें गुंबद नहीं है।
उन्होंने बताया कि जन्माष्टमी 19 अगस्त को मनायी जायेगी और इसके लिए हर साल मंदिर में विशेष तैयारियां की जाती है। इस बार सुबह पांच बजे मंगल आरती होगी इसके बाद सात बजे श्रृंगार और भोग व पूजन होगा। साढे आठ बजे पुन: आरती होगी , इसके बाद भजन कीर्तन जो दोपहर साढ़े बारह बजे तक होगा। सांयकाल चार बजे से भगवान का सवा मन दूध दही पंचामृत से महाभिषेक होगा । एकादश ब्राह्मण बैठकर वेदपाठ का उद्घोष करेंगे, सात बजे संध्या आरती होगी इसके बाद नौ बजे तक भजनकीर्तन के कार्यक्रम होंगे दस बजे से भगवान के जन्म की कथा होगी और रात के ठीक बारह बजे जन्मोत्सव मनाया जायेगा।