उत्तर प्रदेश

रायबरेली में नगर पालिका की जंग के होंगे दूरगामी परिणाम

रायबरेली 20 अप्रैल : कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में होने वाले नगरपालिका चुनाव के लिये राजनीति की बिसात सज चुकी है। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) समेत सभी प्रमुख दलों ने अपने अपने उम्मीदवार मैदान में उतार दिए है जिसके बाद मुकाबले के रोचक होने के कयास लगाये जाने लगे हैं।

रायबरेली का हर चुनाव अपने आप में खास मायने रखता है। रायबरेली के मतदाता जानते हैं कि भले ही यह चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़ा जाना है मगर यहां मिली जीत या हार देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के लिये अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिहाज से बेहद अहम साबित होगी, साथ ही चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा की लोकप्रियता का पैमाना भी यहां की जनता अपने वोट के जरिये दुनिया को बतायेगी।

जिले में पहली बार नगर पालिका अध्यक्ष की सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित की गयी है। कांग्रेस ने इस पद के लिये शत्रुघन सोनकर को मैदान में उतारा है। शत्रुघ्न सोनकर नगर पालिका के वार्ड मेम्बर रह चुके है। उनकी जीत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मजबूती प्रदान करेगी। सोनकर की मदद के लिये नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष मो इलियास ने अपना हाथ बढाया है। इलियास समाजवादी पार्टी (सपा) से किनारा कर कांग्रेस में शामिल हो गए है जिससे निश्चित रूप मुस्लिम वोट बैंक का फायदा भी कांग्रेस को हो सकता है। इसके अलावा भी रायबरेली का अधिकांश वोटर कांग्रेस से जुड़ाव महसूस करता है। शायद इसी का परिणाम था कि डबल इंजन की सरकार आने के बाद भी सोनिया गांधी का परचम बखूबी लहराता रहा।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने रायबरेली के एक चिकित्सक की पत्नी शालिनी कनौजिया को मैदान में उतारा है। श्रीमती कनौजिया पढ़ी लिखी और सभ्रांत महिला है जिनके साथ पढ़े लिखे तबके के अलावा भाजपा के दिग्गज नेता राज्य मंत्री दिनेश प्रताप सिंह, विधायिका अदिति सिंह भी जुड गयी हैं। शहर में सवर्ण वोट बैंक जिसमे ब्राह्मण, कायस्थ, क्षत्रिय, बनिया शामिल है जिनका इस बार भाजपा के पक्ष में ज्यादा समर्थन देखा जा रहा है।

गौरतलब है कि पिछली बार 2017 के नगरपालिका चुनाव में यहाँ से कांग्रेस की पूर्णिमा श्रीवास्तव ने जीत हासिल की थी और पूर्णिमा श्रीवास्तव अब दल बल के साथ भाजपा में शामिल हो चुकी है। नगर में कायस्थों की जनसंख्या भी अच्छी खासी है और कायस्थों के वोट का आसार इस बार भाजपा के पक्ष में दिखाई दे रहा है। अधिकांश ब्राह्मण क्षत्रिय भी भाजपा से अलख जगाए हुए है।

सपा से पारसनाथ किस्मत आजमाने आये है। पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष मो इलियास ने इस बार के चुनाव में टिकट वितरण को लेकर अपना असन्तोष जाहिर किया था। टिकट वितरण को लेकर उसके विरोध में यह कह कर पार्टी से अपना इस्तीफा दिया कि एक पूर्व मंत्री के जेबी व्यक्ति को टिकट देकर पार्टी के मूल कार्यकर्ताओ का अपमान किया गया है और टिकट वितरण में बड़ी अनियमितता बरती गई है जिससे आहत होकर वह पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से अपना इस्तीफा देते है। पारसनाथ की पत्नी सुशीला भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़ी है। लेकिन अगर मुस्लिम वोट सपा और कांग्रेस में बटे तो इसका सीधा फायदा भाजपा को होगा।

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने जगजीवन राम वाडले को मैदान में उतारा है। बसपा का अपना जनाधार है लेकिन अपने वोट बैंक को वह जीत में कितना बदल सकते है यह अभी कहा नही जा सकता है। आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन की ओर से राजेश कुमार ने पर्चा भरा है। आप के टिकट पर पूनम किन्नर ने पर्चा भरा था जिसे प्रशासन ने यह कह कर खारिज कर दिया कि पूनम किन्नर ने अपनी जाति का प्रमाणपत्र नही दिया है। इस चुनाव में करीब नौ उम्मीदवार निर्दलीय खड़े है जिन्हे मिलाकर कुल 14 उम्मीदवार मैदान में है। इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ही अभी तक मुकाबले में नजर आ रही है। आगे चल कर ऊंट किस करवट बैठेगा इसे अभी से नही कहा जा सकता है यह तो 13 मई को ही पता चलेगा।

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