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पूर्णत: गौकाष्ठ की चिता से वन-संरक्षण की मुहिम

नयी दिल्ली, 20 मार्च : राजधानी के पंजाबी बाग श्मशान घाट पर रविवार को एक शव के अंतिम संस्कार के लिए चिता गौकाष्ठ (गाय के गोबर की लकड़ी) से जमाई गयी थी और इस काम में पर्यावरण की रक्षा में लगे एक वैज्ञानिक ने हाथ बंटाया।

गौकाष्ठ मैन ऑफ इंडिया के नाम से मशहूर और अंत्येष्टि एवं होली जैसे आयोजनों में लकड़ी की जगह गौकाष्ठ के इस्तेमाल में लगे केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के भोपाल कार्यालय में पदस्थ वैज्ञानिक डाॅ योगेन्द्र कुमार सक्सेना ने ‘यूनीवार्ता’ से फोन पर बातचीत में कहा, “ मैं दिल्ली में वृक्षों के महत्व को समझते हुए अपने हाथों से पंजाबी बाग श्मशान घाट पर पूरी तरह गौकाष्ठ की चिता से एक शव की अंत्येष्टि करवा कर भोपाल लौटा हूं।”

प्रदूषण बोर्ड के साथ करीब डेढ़ दशक तक दिल्ली में सेवा कर चुके डाॅ सक्सेना ने कहा,“ एक शव का अंतिम संस्कार करवाने में चार क्विंटल सूखी लकड़ी का इस्तेमाल होता है, जो एक मध्यम आकार के वृक्ष के बराबर है। गौकाष्ठ से अंतिम संस्कार करवाने पर ढाई क्विंटल लकड़ी (गौकाष्ठ) का उपयोग होता है। ”

उन्होंने कहा, “ गौकाष्ठ के लट्ठे गाय के गोबर से तैयार किए जाते हैं और भोपाल में तो इसका प्रयोग श्रद्धा के साथ किया जाने लगा है।”

उन्होंने बताया कि भोपाल में अब तक करीब 70 हजार शवदाह गौकाष्ठ से कराए जा चुके हैं और इससे एक लाख 80 हजार क्विंटल वृक्षों की लकड़ी की बचत हुई है। इसी तरह होलिका दहन में भी इसके प्रयोग से 80 हजार क्विंटल लकड़ी की बचत हुई हैं।

वैज्ञानिक ने कहा, “ यदि हम इसका हिसाब वृक्षों की बचत के रूप में लगाएं तो 368 एकड़ जंगल कटने से बचा है। ”

उन्होंने बताया कि गौकाष्ठ की आपूर्ति पर श्मशान घाट से मिलने वाली राशि गौशाला को दी जाती है। इससे गौमाता के संरक्षण के साथ ही गौशालायें स्वावलंबी होती हैं और गौशालाओं में गोबर का उचित प्रबंधन हो जाता है।

डॉ सक्सेना ने कहा, “ गौकाष्ठ से शव-दाह अच्छी तरह होता है। लकड़ी से अंत्येष्टि से वातावरण अधिक प्रदूषित होता है क्योंकि इसमें राख तो कम बचती है, पर इससे निकलने प्रदूषणकारी सूक्ष्म कण हवा में ज्यादा फैल जाते हैं जबकि गौकाष्ठ से अंतिम संस्कार किये जाने पर ज्यादा तर राख शवदाह स्थल पर ही बैठ जाती है।”

डॉ सक्सेना ने कहा कि उनका लक्ष्य है कि पूरे देश में गौकाष्ठ का अंतिम संस्कार, होलिका दहन, लोहड़ी, इंडस्ट्रियल वॉयलर, तंदूर तथा घरेलू उपयोग में इस्तेमाल किया जाये। इससे देश में बड़ी संख्या में पेड़ कटने से बच जायेंगे और हरियाली एवं खुशहाली बढ़ेगी।

गौकाष्ठ से अंत्येष्टि के मौके पर इस कार्य से जुड़े लोग मौजूद थे।

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