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इस्कॉन में महिला दीक्षा गुरु बनाने का विरोध चरम पर

नयी दिल्ली, 10 अगस्त : अंतरराष्ट्रीय कृष्ण चेतना समाज (इस्कान) एक बार फिर विवादों के घेरे में आ गया है। प्रथम महिला दीक्षा गुरु बनाने के फैसले के कारण इस्कान के भीतर ही विरोध के सुर बुलंद होने लगे हैं। इस्कान के एक गुट ने सर्वोच्च शासी निकाय को शास्त्रार्थ की चुनौती दी है।

इस्कॉन के भारत विद्धत मंडल के संयोजक कृष्ण कीर्ति दास ने बुधवार को यहां बताया कि इस्कॉन शास्त्रीक सलाहकार परिषद (एसएसी) की अध्यक्ष उर्मिला देवी दासी उर्फ एडिथ बेस्ट, पीएचडी, और उनकी सहयोगी महिलाओं को एक स्त्री के आचार्य (दीक्षा गुरु) बनने एवं शिष्य ग्रहण करने के अधिकार दिये जाने के प्रस्ताव काे वैदिक परंपरा के प्रतिकूल बताते हुए इस मुद्दे पर एक शास्त्रार्थ में भाग लेने की चुनौती दी गयी लेकिन उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार नहीं किया है। इस शास्त्रार्थ प्रणाली को इस्कॉन के आध्यात्मिक शिष्य उत्तराधिकार में दीक्षा के रूप में जाना जाता है।

श्री कृष्ण कीर्ति दास ने कहा कि कल, इस्कॉन भारत विद्धत मंडल ने अपनी वेबसाइट पर आधिकारिक तौर पर इस्कॉन में महिलाओं के आचार्य (गुरु) बनने के अधिकारों की रक्षा के लिए शास्त्री सलाहकार परिषद को एक शास्त्रार्थ (पंडितों द्वारा नियोजित बहस का एक पारंपरिक रूप में) करने की चुनौती दी थी। लेकिन एसएसी की अध्यक्ष उर्मिला देवी दासी ने कानूनी आधार पर चुनौती को तुरंत खारिज कर दिया। दासी ने कहा,“ आधिकारिक एसएसी प्रोटोकॉल और उपनियमों के अनुसार, केवल जीबीसी निकाय (इस्कॉन का सर्वोच्च निकाय) या जीबीसी ईसी ही इस प्रकार के शास्त्रार्थ के लिए एसएसी को अनुरोध कर सकता है और एसएसी इस निवेदन को ईसी या संपूर्ण जीबीसी निकाय के अनुरोध पर भी, अस्वीकार कर सकता है। ”

आईआईएसबी के संयोजक कृष्णा कीर्ति दास ने कहा कि तटस्थ विद्वानों की उपस्थिति में सार्वजनिक रूप से अपने अधिकार का बचाव किए बिना, इस्कॉन में महिलाओं का आचार्य बनना समाज की प्रतिष्ठा के लिए हानिकारक होगा, लेकिन वैदिक परंपरा में महिलाओं के कई उदाहरण हैं जिन्होंने इस तरह की चर्चा में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। गार्गी और मैत्रेयी वैदिक ज्ञान की व्याख्या करने के साथ-साथ अन्य, बहुत विद्वान पंडितों पर बहस करने की क्षमता के लिए प्रसिद्ध थी। आलोचकों का हालांकि कहना है कि इस्कॉन एसएसी के कानूनी दांव-पेंच माध्यम से चर्चा से बचने का प्रयास कर रहे है, क्योंकि बिना चर्चा के ऐसी बातों को हवा दी जा सकती है जिससे ऐसा लगे कि इस्कॉन में महिलाएं, इस्कॉन के पुरुष नेतृत्व पर निर्भर हैं।

इस्कॉन के भारत विद्धत मंडल की ये चुनौती इसलिए आई है क्योंकि विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि इस्कॉन का शासी परिषद आयोग इस सप्ताह एक या उससे अधिक महिलाओं को इस बात की अनुमति दे देगा जिससे वे भविष्य में शिष्यों को स्वीकार कर सकें।

कुछ आलोचकों का लेकिन कहना है कि 20 से अधिक वर्षों में जब से यह विवाद बना हुआ है, जीबीसी या एसएसी ने एक बार भी दो विरोधी पक्षों के बीच एक नियंत्रित चर्चा की मेजबानी करने पर विचार नहीं किया है। श्री कृष्ण कीर्ति दास कहते हैं, “इस मामले को सुलझाने के लिए अब जजों की उपस्थिति में बहस ही एकमात्र सम्मानजनक तरीका है। महिलाओं को अपने आचार्य बनने एवं शिष्य ग्रहण करने से पूर्व अधिकार के पक्ष में शास्त्रीक चर्चा करनी चाहिए, अन्यथा यह प्रक्रिया अपमानजनक मानी जाएगी। ”

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