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माकपा ने त्रिपुरा में टिपरा मोथा पार्टी पर भाजपा की मदद करने का आरोप लगाया

अगरतला, 21 अप्रैल : त्रिपुरा विधानसभा चुनाव परिणाम के डेढ़ महीने बाद विपक्षी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी ने शुक्रवार को दावा किया कि शाही वंशज प्रद्योत किशोर देबबर्मन की टिपरा मोथा पार्टी ने विपक्षी वोटों को विभाजित करके राज्य में भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) को सत्ता प्राप्त करने में मदद की।

श्री चौधरी ने कहा कि माकपा ने राज्य चुनाव परिणाम की समीक्षा करने के लिए निर्वाचन क्षेत्र स्तरीय समिति का गठन किया था, जो कि सही प्रतीत होता है और इसे राज्य समिति को सौंप दी गई है। इसमें यह खुलासा किया गया है कि माकपा-कांग्रेस गठबंधन 60 सदस्यीय विधानसभा 22 गैर आरक्षित सीटों में कम से कम 16 सीटों पर टिपरा के कारण हार गई।

उन्होंने कहा कि अगर टिपरा सामान्य सीटों पर चुनाव नहीं लड़ती और उन सीटों पर आदिवासी वोट नहीं काटती, तो भाजपा की जीत केवल 11 निर्वाचन क्षेत्रों तक ही सीमित रहती।

उन्होंने कहा कि भाजपा के कुशासन के खिलाफ माकपा-कांग्रेस ने गठबंधन किया था और मोथा भी उन्हीं हितधारकों में से एक थी। लेकिन बार-बार चुनाव में अपना भाजपा विरोधी रुख रखने के बावजूद मामला आखिरकार उल्टा हो गया, जिसने न केवल विपक्षी दलों को नुकसान पहुंचा बल्कि मोथा की सीटों की संख्या भी प्रभावित हुई।

श्री चौधरी ने कहा ,“ भाजपा को इस चुनाव में वर्ष 2018 के मुकाबले वोट शेयर का घाटा हुआ उसने कम से कम 11 प्रतिशत मत खो दिया और 39 प्रतिशत वोटों और 33 सीटों के साथ सरकार बनाने में सफल रही। टिपरा मोथा को लग रहा था कि वह सरकार के गठन में निर्णायक भूमिका में होगी लेकिन यह गलत हो गया और भाजपा ने आसानी से जीत प्राप्त कर ली।”

उन्होंने दावा किया कि 22 गैर-आरक्षित सीटों पर भले ही मोथा उम्मीदवारों को शतप्रतिशत आदिवासी वोट मिले हों लेकिन उसे किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में जीत प्राप्त नहीं हुई और उसने इन निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा को फायदा पहुंचाया।
उन्होंने कहा कि हालांकि, वाम दलों का मानना है कि अतीत को भूलाकर उसमें सुधार करने की आवश्यकता है और राज्य में भाजपा की जन-विरोधी शासन के खिलाफ एकजुट होकर लड़ाई जारी रखना चाहिए।

श्री चौधरी ने कहा, “हमने अंतिम समय तक मोथा के साथ तालमेंल बैठाने की ईमानदार कोशिश की लेकिन दुर्भाग्यवश समझौता नहीं हो सका। यह सच है कि मोथा भाजपा के खिलाफ रही, भले ही वह वाम-कांग्रेस गठबंधन में शामिल नहीं हुई। लेकिन उसके कुछ बड़े नेताओं ने गुप्त रूप से अपने निजी लाभ के लिए भाजपा की सहायता की।”

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