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झूलन और मिताली के बिना भारतीय टीम एक नई शुरुआत की ओर

बर्मिंघम, 28 जुलाई : कॉमनवेल्थ गेम्स में ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह भारतीय महिला क्रिकेट का एक नया दौर है। टीम में अब मिताली राज और झूलन गोस्वामी नहीं है। ये दोनों खिलाडी कम से कम एक फ़ॉर्मेट के लिए वनडे विश्व कप तक उपलब्ध थीं। हालांकि अब ये दोनों खिलाड़ी टीम के साथ नहीं हैं।

पिछले 25 सालों से यह जोड़ी भारतीय महिला क्रिकेट का पर्याय रही है। 1997 में मिताली 14 साल की थीं, जब उन्हें घरेलू धरती पर भारत के 50 ओवरों के विश्व कप टीम में चुना गया था। इस पर केवल यह कहा जा सकता था कि वह अंतिम एकादश में जगह बनाने के लिए बहुत छोटी थीं। उसी संस्करण में झूलन ईडन गार्डन्स में उस प्रसिद्ध ऑस्ट्रेलिया-इंग्लैंड फ़ाइनल में एक बॉल गर्ल थीं।

इसके बाद से यह दोनों खिलाड़ी एक ऐतिहासिक यात्रा का हिस्सा रही हैं। साल 2002 में साउथ अफ़्रीका में टेस्ट जीत से लेकर साल 2005 में विश्व कप के उपविजेता बनने तक यह साथ रहीं। इसके बाद साल 2006 और 2014 में इंग्लैंड को टेस्ट क्रिकेट में मात देना। साल 2016 में आठ नए खिलाड़ियों के साथ ऑस्ट्रेलिया में सीरीज़ जीतना। इन दोनों खिलाड़ियो के सह यात्रा का हिस्सा रहा है।

हालांकि मैदान पर आये, इस बदलाव के लिए मैदान के बाहर भी उन्होंने महिला क्रिकेट को मिलने वाली सुविधाओं के लिए संघर्ष किया। इसके लिए उन्होंने बीसीसीआई से भी टक्कर लिया। उनके संघर्ष के बाद सेकेंड क्लास ट्रेन का जमाना ख़त्म होकर महिला खिलाड़ियों को एयर टिकट मिलने लगा। छोटे कमरों वाले होटलों की जगह पर बढ़िया होटल मिलने लगे।

मैदान से बाहर उन्होंने हज़ारों युवाओ को क्रिकेट खेलने के लिए प्रति प्रेरित किया। यह उनके सबसे बड़े योगदानों में से एक था लेकिन इसके अलावा उन्होंने महिला खिलाड़ियों के केंद्रीय अनुबंधों के लिए सक्रिय रूप से पैरवी की जो अंततः 2016 से अस्तित्व में आया।
एक मायने में मिताली और झूलन के बिना सक्रिय क्रिकेटरों के रूप में वैश्विक आयोजन में भारत के बारे में सोचना अब लगभग असंभव है। लंबे समय तक टीम के दो साथी और दोस्त अपने करियर में एक-दूसरे के नीचे खेले। कई बार निराश होने के बावजूद वह अपने खेल को और टीम को आगे बढ़ाते रहीं।

झूलन ने 2018 में टी20 से संन्यास ले लिया था और मिताली ने भी 2019 में इस प्रारूप को अलविदा कह दिया था। फिर भी टीम पर हमेशा उनकी मौजूदगी थी, क्योंकि वे अभी भी 50 ओवर के खिलाड़ी सक्रिय थे। मिताली के मामले में कप्तान होने का मतलब था कि समूह पर उनका अब भी गहरा प्रभाव था।इसलिए भले ही हरमनप्रीत कौर के पास टी20 में टीम को चलाने का एक निश्चित तरीका था, लेकिन हमेशा से एक भावना यह भी थी कि यह उनकी टीम नहीं थी। एक तरह से यह अजिंक्य रहाणे की तरह था जो विराट कोहली के आराम करने पर हर बार भारत का नेतृत्व करने के लिए आगे आए।

जब दो अलग-अलग कप्तान होते थे, तो कभी-कभी चीज़ें आसान नहीं होती थीं क्योंकि हम (मिताली और मैं) दोनों के विचार अलग थे। अब मेरे लिए उनसे (अपने साथियों से) यह पूछना आसान हो गया है कि मैं उनसे क्या उम्मीद कर रही हूं।

यह कोई रहस्य नहीं है कि मिताली और हरमनप्रीत दो अलग-अलग शैली की कप्तान थी, जिन्हें अक्सर बीच का रास्ता खोजने की ज़रूरत होती थी। दो सुपरस्टार अपने आप में एक समान दृष्टिकोण साझा नहीं करते थे। जून में श्रीलंका दौरे से पहले पूर्णकालिक एकदिवसीय कप्तान बनाए जाने पर अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में हरमनप्रीत को आख़िरकार एक सुकून का एहसास हुआ जो यह जानने से उपजी थी कि यह उनकी टीम थी।
हरमनप्रीत कौर ने कहा, “जब दो अलग-अलग कप्तान होते थे, तो कभी-कभी चीज़ें आसान नहीं होती थीं क्योंकि हम (मिताली और मैं) दोनों के विचार अलग थे। अब मेरे लिए उनसे (अपने साथियों से) यह पूछना आसान हो गया है कि मैं उनसे क्या उम्मीद कर रही हूं। चीजे़ें मेरे लिए बहुत आसान होंगी और मेरे साथियों के लिए भी स्पष्ट होंगी।”

आप इसे किसी भी तरह से देखें राष्ट्रमंडल खेलों से पहले श्रीलंका दौरा मिताली-झूलन युग के बाद भारत का पहला कदम था। दोनों दिग्गजों के पास इस खेल में योगदान देने के लिए अभी भी काफ़ी कुछ है। शायद ज़मीनी स्तर पर या प्रशासक के रूप में लेकिन मैदान पर, एक व्यापक भावना है कि टीम आख़िरकार दो सितारों की छाया से आगे बढ़ गई है। आख़िरकार यह एक ऐसी पीढ़ी है जिसके लिए मिताली और झूलन ने कड़ी मेहनत की है। यह अब उनके लिए पहचान और भविष्य के लिए एक सकारात्मक रास्ता तय करने का मौक़ा है।राष्ट्रमंडल खेल अभी भी इस दिशा में एक छोटा कदम या एक बड़ी छलांग हो सकती है।

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