जम्मू-कश्मीर

डोडा में सेना, वीडीजी को विशेष शिविर में दे रही है हथियारों का प्रशिक्षण

जम्मू, 11 जनवरी : जम्मू-कश्मीर में सेना, आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए ग्राम रक्षा गार्ड (वीडीजी) को पुनर्जीवित कर रही है और इसके तहत ग्रामीणओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है और उन्हें हथियारों से लैस किया जा रहाहै।
सेना आतंकवादियों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए प्रदेश के डोडा जिला में वीडीजी को प्रशिक्षण दे रही है। सेना ने यह कदम राजौरी जिला के धंगरी गांव में दो आतंकवादी वारदातों के मद्देनजर ( इन घटनाओं में सात लोग मारे गए थे और लगभग 15 घायल हुए थे) उठाया गया है।

सेना के एक अधिकारी ने बताया कि ग्रामीणों को ग्राम रक्षा गार्ड (वीडीजी) के बैनर तले प्रशिक्षित और सशस्त्र किया जा रहा है, जिसे पहले ग्राम रक्षा समिति (वीडीसी) कहा जाता था, उसके लिए एक नया नाम है।

उन्होंने कहा, “ ज़िले के कोने-कोने में आयोजित आत्मरक्षा शिविरों में पिछले दो हफ्तों में अभूतपूर्व भागीदारी देखने को मिली है। ”
उन्होंने कहा कि वीडीजी को धीरे-धीरे एसएलआर हथियारों से लैस किया जा रहा है, जो पुराने 303 राइफलों की जगह लेंगे।
उन्होंने कहा, “ डोडा में पुलिस के साथ मिलकर स्थानीय सेना इकाई, राष्ट्रीय राइफल्स द्वारा अब तक कुल आठ शिविर आयोजित किए गए हैं, जिसमें लगभग 500 वीडीजी सदस्यों की उपस्थिति देखी गई है।” उन्होंने कहा कि भारतीय सेना ने डोडा के अरनोरा फायरिंग रेंज में स्वयंसेवकों के लिए अब तक तीन विशेष फायरिंग अभ्यास सत्र आयोजित किया है।

उन्होंने कहा, “ जिले के विभिन्न गांवों से लिए गए 170 से अधिक वीडीजी ने फायरिंग अभ्यास सत्र में भाग लिया। इसे स्थानीय पुलिस के समन्वय में आयोजित किया गया था।”

उन्होंने कहा कि सेना के हथियार संचालकों और शूटिंग विशेषज्ञों ने वीडीजी को हथियारों के उचित उपयोग करने का तरीका बताया, जिन्होंने बाद में फायरिंग का अभ्यास किया।
वहीं, जीई कैंप में प्रशिक्षण ले रहे एक वीडीजी सदस्य ने कहा, “ हम भारतीय सेना और जेकेपी को हमें प्रशिक्षण देने और हमें बेहतर फायरिंग रेंज की सुविधाएं मुहैया कराने के लिए धन्यवाद देते हैं।’ ”

 

उल्लेखनीय है कि ग्राम रक्षा रक्षकों में स्थानीय ग्राम स्वयंसेवक शामिल होते है और 1990 के दशक में पहली बार डोडा सहित कई जिलों में सक्रिय हुए थे। ये गाँवों की आत्मरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। आतंकवाद विरोधी अभियानों में बलों की सहायता करते थे और संबंधित गाँवों में सतर्कता बनाए रखते थे।
इसके बाद वे कई वर्षों तक निष्क्रिय रहे, लेकिन उभरती हुई आतंकी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए दो साल पहले यानी 2020 में इसे फिर से सक्रिय किया गया।

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