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शिक्षक भर्ती: टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी को झटका, ईडी, सीबीआई जांच रोकने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

नयी दिल्ली, 10 जुलाई : उच्चतम न्यायालय ने पश्चिम बंगाल कथित शिक्षक भर्ती घोटाले की जांच के मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद अभिषेक बनर्जी से पूछताछ करने की अनुमति देने वाले कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से सोमवार को इनकार कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि इस स्तर पर उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करना उचित नहीं होगा।
शीर्ष अदालत ने हालाँकि, कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश के उस हिस्से पर रोक लगा दी थी, जिसमें अभिषेक बनर्जी पर 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था।
पीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता अभिषेक जांच रद्द करने सहित अपने सभी कानूनी उपाय अपनाने के लिए स्वतंत्रता है।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू की दलीलें सुनने के बाद अपना आदेश पारित किया।
पीठ ने अपने आदेश में कहा,“हम इस स्तर पर आदेश (उच्च न्यायालय के आदेश) में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं, क्योंकि ऐसा करने का परिणाम प्रारंभिक चरण में ही जांच को रोकना होगा..”
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने पहले ही इस मामले में सोच समझकर आदेश दिया था। इसमें इस स्तर पर हस्तक्षेप करना उचित नहीं होगा।
उच्चतम न्यायालय ने इस साल मई में पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाले की जांच के संबंध में सीबीआई और ईडी को अभिषेक बनर्जी से पूछताछ करने से रोकने से इनकार करने वाले कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ (बनर्जी की) याचिका पर ईडी को नोटिस जारी किया था।
कलकत्ता उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा की एकल पीठ ने 18 मई को न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय की पीठ के पिछले आदेश पर सहमति व्यक्त की थी, जिससे दोनो केंद्रीय एजेंसियों सीबीआई और ईडी को मामले के संबंध में अभिषेक बनर्जी से पूछताछ करने की अनुमति दी गई थी।
न्यायमूर्ति सिन्हा ने न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय के आदेश पर सहमति व्यक्त करने के के अलावा याचिकाकर्ता बनर्जी पर 25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था।
न्यायमूर्ति सिन्हा को यह मामला तब सौंपा गया जब उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से मामले को एक अलग पीठ को सौंपने के लिए कहा था।
याचिकाकर्ता बनर्जी ने मामले में गंगोपाध्याय के टीवी साक्षात्कार पर आपत्ति जताई थी। इस पर आपत्ती दर्ज कराने के बाद शीर्ष अदालत ने मामले को उच्च न्यायालय के एक अलग पीठ को सुनवाई के लिए सौंपने का निर्देश दिया था।

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