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आयात के एक चौथाई मूल्य पर खनिज तेल का उत्पादन कर सकता है भारत: अनिल अग्रवाल

Anil Agarwal

नयी दिल्ली, 20 जुलाई : वेदांता समूह के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने देश को तेज गति से एक बड़ी अर्थव्यस्था बनाने के लक्ष्य की दिशा में खनिज क्षेत्र की भूमिका को प्रोत्साहित करने पर बल देते हुए कहा है कि भारत वर्तमान आयात मूल्य के चौथाई हिस्से पर तेल का उत्पादन कर सकता।

श्री अग्रवाल ने कहा कि इस क्षेत्र में काम कर रही उनकी कंपनी केयर्न सरकार को इस समय 26 डॉलर पर तेल उपलब्ध करा रही है।
उन्होंने बुधवार को यहां जारी एक बयान में कहा कि भारत को अगले दो दशकों में न केवल पांच हजार अरब डॉलर बल्कि 15-20 हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था के सपने को साकार करना है तो देश में एक अच्छी तरह से काम करने वाले खानों और खनिज क्षेत्र को एक बड़ी भूमिका निभानी होगी। इसमें स्व-प्रमाणन प्रणाली की ओर बढ़ने से उत्पादन को 2-3 गुना बढ़ाया जा सकता है।

गौरतलब है कि भारत खनिज तेल की अपनी जरूरत का तीन चौथाई से अधिक तेल आयात करता है। उक्रेन-रूस संग्राम के बीच कच्चे तेल का बाजार प्रति बैरल 140 डालर के आस-पास चला गया था। इस समय भी बाजार 100 डालर के आस-पास बना हुआ है।
उन्होंने कहा, “यह वह समय है जब सभी खदान पट्टे कम से कम 50 वर्षों के लिए होने चाहिए ताकि भारतीय और विदेशी कंपनियां अच्छी तरह से योजना बना सकें और निष्पादित कर सकें। सभी मौजूदा खदानें, जिन्हें निजी क्षेत्र द्वारा खोजा गया था लेकिन जहां काम रोक दिया गया है, उन्हें वापस दी जानी चाहिए।” उन्होंने सुझाव दिया कि यदि सरकार अधिक राजस्व चाहती है, तो वह उचित होने पर शुल्क और रॉयल्टी बढ़ा सकती है, लेकिन हम उत्पादन को रोकने का जोखिम नहीं उठा सकते।

उन्होंने कहा कि देश के स्टार्ट-अप और उद्यमियों को बिना किसी डर और बाधाओं के काम पर अपनी ऊर्जा लगाने के लिए प्रोत्साहित करने से सरकार के लिए बड़े पैमाने पर रोजगार और बड़े पैमाने पर राजस्व का सृजन होगा।
उन्होंने कहा, “इसी दिशा में कदम उठाते हुए माननीय प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण के अनुरूप भारत में किफायती तेल और गैस भी प्राप्त हो सकती है।”

खनिज क्षेत्र के दिग्गज कारोबारी श्री अग्रवाल ने कहा कि भारत के लिए धातुओं, दुर्लभ धातुओं, खनिजों और हाइड्रोकार्बन की विस्तृत श्रृंखला के लिए अपनी खोज और उत्पादन न नीति को उदार बनाना बहुत महत्वपूर्ण है। प्रकृति की ओर से भारत को धातुओं और खनिजों के महत्वपूर्ण भंडार का उपहार हासिल हुआ है, लेकिन यह विडंबना है कि हम साल-दर-साल भारी आयात बिल का भुगतान करते रहते हैं।

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