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बम्बई हाईकोर्ट का टाडा के तहत दोषी कैदी को पेरोल देने से इंकार

नागपुर 30 जनवरी : बम्बई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज (टाडा) के तहत दोषी पाये गये कैदी को यह कहते हुए पेरोल देने से इंकार कर दिया है कि आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त पाये गये दोषी पेरोल दिये जाने के पात्र नहीं हैं।

हसन मेंहदी शेख टाडा कानून की कई गंभीर धाराओं के सहित अन्य कई अपराधों में दोषी पाया गया था जो वह अमरावली सेंट्रल जेल में आजीवनकारावास की सजा काट रहा है । उसने अपनी बीमार पत्नी को देखने के लिए न्यायालय के समक्ष पेरोल दिये जाने की गुहार लगायी थी। जेल प्रशासन ने जेल नियमों के अनुसार उसके पेरोल पर रिहा करे जाने का पात्र न होने की जानकारी देतेे हुए उसकी अर्जी को पहले ही खारिज कर दी थी, जिसके बाद उसने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।

न्यायमूर्ति एस बी शुक्रे और न्यायमूर्ति एम डब्ल्यू चांदवानी की खंडपीठ ने दो दिसंबर 2022 को शेख की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि कानूनों के तहत एक विशेष प्रावधान है जो टाडा कानून के तरह दोषी करार दिये गये लोगों को नियमित पेरोल का लाभ दिये जाने से वंचित करता है। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि आतंकवादी गतिविधियों में शामिल रहे कैदियों और टाडा कानून के तहत दोषी पाये गये कैदी सामान्य पेरोल दिये जाने के लिए पात्र नहीं होते हैं।

शेख ने अपनी याचिका में उच्चतम न्यायालय के 2017 के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा था कि टाडा के तहत दोषी पाये जाने के बाद भी वह कैदी सामान्य पेरोल पाने से वंचित नहीं होगा। लेकिन बम्बई उच्च न्यायालय ने कैदी की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि उच्चतम न्यायालय ने वह फैसला जिस कैदी की याचिका पर दिया था वह याचिका राजस्थान की थी और इसलिए उसका उल्लेख महाराष्ट्र के कैदियों के लिए इस्तेमाल होने वाले नियमों में नहीं किया जा सकता है।

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