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पोषण आहार मामले में कांग्रेस भ्रम फैला रही है – शिवराज

भोपाल, 14 सितंबर : मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज कहा कि राज्य में पोषण आहार मामले में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस भ्रम फैलाने का कार्य कर रही है, जबकि राज्य सरकार इस मामले से जुड़े तथ्यों की जांच करवाकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है।

राज्य के कथित पोषण आहार घोटाले के मामले को लेकर विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के हंगामे के बाद श्री चौहान ने विधानसभा परिसर में मीडिया से कहा कि महालेखाकार ने वर्ष 2018 से 2021 के बीच महिला एवं बाल विकास विभाग के कार्यालयों का ऑडिट किया है। इसके आधार पर महालेखाकार ने अपनी ‘ड्राफ्ट रिपोर्ट’ पिछले माह विभाग को भेजी है। उन्होंने कहा कि इस ड्राफ्ट रिपोर्ट को ही अंतिम निष्कर्ष मानकर विगत कुछ दिनों से भ्रम की स्थिति पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है। श्री चौहान ने कहा कि इस भ्रम को समाप्त करने के लिए ही आज उन्होंने सदन में वक्तव्य देना प्रारंभ किया था, लेकिन कांग्रेस सदस्यों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया। इसके बावजूद उन्होंने अपना वक्तव्य पूरा दिया।

श्री चौहान ने बताया कि भ्रम फैलाने की कोशिशों के बीच सरकार ने तय किया वक्तव्य के माध्यम से सारी स्थिति सदन को और सदन के माध्यम से जनता को स्पष्ट की जाए। सदन में वक्त्व्य देना सरकार का अधिकार है, लेकिन वे यह नहीं समझ पाए कि जब सरकार तथ्यों के साथ वक्तव्य देना चाहती थी, तो प्रतिपक्ष को क्या परेशानी थी। वक्तव्य के बाद नेता प्रतिपक्ष तथा और भी सदस्य बोल सकते थे और उनके जवाब भी सरकार दे सकती थी। लेकिन क्या मालूम क्यों विपक्ष सदन में चर्चा करने से भाग रहा था।

इस बीच श्री चौहान ने वक्तव्य में कहा है कि सबसे पहले वे सदन को ऑडिट की प्रक्रिया के बारे में जानकारी देना चाहते हैं। लोकतंत्र में कार्यपालिका, विधायिका के प्रति जवाबदेह होती है। विधायिका द्वारा जो बजट स्वीकृत किया जाता है, उसका सही उपयोग सुनिश्चित हो रहा है या नहीं, ये जानने के लिए सरकार की विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के ऑडिट की एक संस्थागत व्यवस्था बनाई गई है। ऑडिट की ये प्रक्रिया कोई नई प्रक्रिया नहीं है। ऑडिट हर वर्ष होता है और हर विभाग में होता है।

मुख्यमंत्री ने बताया कि महालेखाकार कार्यालय के ऑडिटरों की टीम विभागों में आती है और उनके द्वारा जो ‘ऑब्जर्वेशन्स’ किए जाते हैं, उन्हें वह अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में शामिल कर विभाग को भेजते हैं। महालेखाकार कार्यालय द्वारा अपने ऑब्जर्वेशन्स ड्राफ्ट रिपोर्ट के रूप में संबंधित विभागों को उनका अभिमत जानने के लिए भेजे जाते हैं। फिर संबंधित विभाग ड्राफ्ट रिपोर्ट में वर्णित तथ्यों का परीक्षण और सत्यापन करता है तथा अपना पक्ष महालेखाकार के सामने प्रस्तुत करता है। विभाग से अभिमत प्राप्त होने के बाद समग्र रूप से विचार कर महालेखाकार द्वारा अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने की कार्रवाई की जाती है। विभाग के जिस अभिमत से महालेखाकार संतुष्ट हो जाते है, ऐसे ऑब्जर्वेशन अंतरिम रिपोर्ट से हटा लिये जाते हैं। इसके बाद महालेखाकार अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देते हैं।

श्री चौहान ने बताया कि बात यहीं समाप्त नहीं हो जाती है। नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट राज्य शासन को प्राप्त होती है और वित्त मंत्री इस रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखते हैं। इसके बाद यह रिपोर्ट विधानसभा की लोक लेखा समिति के समक्ष रखी जाती है। वर्तमान में लोक लेखा समिति के अध्यक्ष विपक्ष (कांग्रेस) के सदस्य पी. सी. शर्मा हैं। कैग रिपोर्ट में वर्णित तथ्यों के आधार पर लोक लेखा समिति विभाग से पूछताछ करती है, वरिष्ठ अधिकारियों को तलब करती है और जहां गड़बड़ी पाई जाती है, वहां दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा की जाती है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि कुल मिलाकर ऑडिट रिपोर्ट की ये संपूर्ण प्रक्रिया है। आज उन्हें इसे दोहराने की आवश्यकता इसलिए पड़ रही है, क्योंकि सदन को और सदन के माध्यम से प्रदेश की जनता को सच जानना आवश्यक है। जिस रिपोर्ट को विपक्षी सदस्यों की ओर से कैग की रिपोर्ट बताया जा रहा है, वह दरअसल कैग की रिपोर्ट है ही नहीं। यह केवल एक ड्राफ्ट रिपोर्ट है, जो कि मध्यप्रदेश के महालेखाकार यानी (एजी ऑफिस) द्वारा तैयार की गई है। इस ड्राफ्ट रिपोर्ट में जो पैरा लिखे गए है, वे एजी ऑफिस के प्रारंभिक आब्जर्वेशन्स हैं।

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