राजस्थान

नई पीढ़ी को संस्कृति से जोड़ने के लिए संस्कृत को बढ़ावा देने की जरूरत-मिश्र

जयपुर, 10 अप्रैल: राजस्थान के राज्यपाल एवं कुलाधिपति कलराज मिश्र ने देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने में संस्कृत भाषा की महत्वपूर्ण भूमिका बताते हुए प्राचीन भारतीय साहित्य एवं संस्कृति से नई पीढ़ी को जोड़ने के लिए संस्कृत को नए संदर्भ देते हुए बढ़ावा दिए जाने पर बल दिया है।

श्री मिश्र सोमवार को जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय जयपुर के दीक्षान्त समारोह में सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जीवन व्यवहार और आदर्श लोकाचार की शिक्षा संस्कृत भाषा में बहुत सहज एवं सुंदर रूप में दी गई है। संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से आंतरिक सुसंगति वाली भाषा है, जो विचारों के आदान-प्रदान के लिए बहुत सरल और मधुर है।

उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा सनातन सांस्कृतिक मूल्यों की संवाहक है। वेद, पुराण सहित दर्शन, तत्त्वमीमांसा, धार्मिक चिंतन, काव्य, अलंकार शास्त्र, नाटक, ब्रह्मांडविज्ञान, खगोल शास्त्र, भूगोल, भू-विज्ञान, वनस्पतिविज्ञान, शरीर-रचनाविज्ञान, शल्यक्रिया, आयुर्वेद, आनुवांशिकी, वास्तुकला, वैमानिकी, यंत्र विज्ञान, रसायन शास्त्र, जीवविज्ञान, प्रणालीविज्ञान, गणित शास्त्र, मनोविज्ञान आदि के ज्ञान का संस्कृत में अथाह भंडार है। उन्होंने कहा कि संस्कृत में रचे गए महती साहित्य, ज्ञान-विज्ञान से जुड़ी पुस्तकों को हिंदी के साथ दूसरी भारतीय भाषाओं में अनुवादित कराने की पहल की जाए ताकि संस्कृत का प्राचीन ज्ञान नई पीढ़ी को उपलब्ध हो सके।

उन्होंने इस अवसर पर संस्कृत के प्राचीन ज्ञान के आधार पर भारतीय संस्कृति से जुड़ा कोष भी तैयार करने का सुझाव दिया।

इस मौके पर शिक्षा, कला एवं संस्कृति तथा संस्कृत शिक्षा मन्त्री डॉ. बी.डी. कल्ला ने कहा कि संस्कृत वेद भाषा है और कई भारतीय भाषाओं की जननी है। यही नहीं, कई विदेशी भाषाओं में भी संस्कृत के शब्द पाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा की संक्षिप्तीकरण की शैली इतनी अद्भुत है जो अन्य किसी भाषा में नहीं है। उन्होंने कहा कि राजस्थान में संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए हाल ही प्रदेश में 20 महाविद्यालय खोले जाने का निर्णय लिया गया।

उन्होंने कहा कि इसी प्रकार नए प्राथमिक, माध्यायिक एवं उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के दस प्रतिशत संस्कृत विद्यालय खोले जा रहे हैं। उन्होंने संस्कृत शिक्षा को डिजिटल एवं आधुनिक तकनीकों से जोड़े जाने की आवश्यकता जताई । उन्होंने विश्वविद्यालय में संगीत, ललित कला आदि संकायों की शिक्षा शुरू करवाए जाने का सुझाव भी दिया।

कुलपति डॉ. रामसेवक दुबे ने विश्वविद्यालय का प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत करते विश्वविद्यालय की अब तक की विकास-यात्रा के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में अधिकाधिक विद्यार्थियों को आकर्षित करने के उद्देश्य से यहां संस्कृत की अनिवार्यता के साथ बीए एवं एमए के पाठ्यक्रम आगामी सत्र से आरम्भ किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि छात्राओं को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से उनके लिए यहां निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जा रही है। विश्वविद्यालय स्तर पर शैक्षिक आदान- प्रदान को बढ़ावा देने के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के साथ एमओयू किया गया है और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के साथ एमओयू प्रक्रियाधीन है।

राज्यपाल ने समारोह में लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली के कुलपति प्रो. मुरली मनोहर पाठक, जयपुर महानगर टाइम्स के संस्थापक संपादक गोपाल शर्मा, प्रख्यात शिल्प शास्त्री अनूप बरतरिया एवं अंतरराष्ट्रीय शूटर अपूर्वी चन्देला को विद्या वाचस्पति( डी.लिट.) की मानद उपाधि प्रदान की। सुश्री विद्या किन्ही कारणवश कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो सकी। समारोह में विभिन्न संकायों के उत्तीर्ण विद्यार्थियों को विद्या वारिधि, विद्या निधि संयुक्ताचार्य एवं आचार्य की उपाधियां प्रदान की गई। राज्यपाल ने इस अवसर पर उल्लेखनीय प्रदर्शन करने वाले 16 प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक तथा 14 विद्यार्थियों को विद्या वारिधि( पीएचडी) की उपाधि प्रदान की।

समारोह का आरम्भ मंगलाचरण एवं सरस्वती वंदना से हुआ। इसके उपरान्त राज्यपाल श्री मिश्र ने संविधान की प्रस्तावना और मूल कर्त्तव्यों का पाठ किया। झ्स अवसर पर बहुभाषी शोध पत्रिका वयम् एवं समाचार पत्रिका प्रकृति का लोकार्पण भी किया गया।

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