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दिव्यांगों में कौशल, सामर्थ्य बढ़ाने के लिए सांकेतिक भाषा को मिले बढ़ावा: मोदी

नयी दिल्ली 25 सितंबर : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिव्यांगों के लिए सांकेतिक भाषा की उपयोगिता को रेखांकित करते हुए देशवासियों का आज आह्वान किया कि वे शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के कौशल एवं सामर्थ्य बढ़ाने के लिए भारतीय सांकेतिक भाषा को लेकर जागरूकता बढ़ाने के उपायों में सहयोग एवं समर्थन दें।

श्री मोदी ने यहां आकाशवाणी पर अपने ‘मन की बात’ मासिक कार्यक्रम में कहा कि कहते हैं – जीवन के संघर्षों से तपे हुए व्यक्ति के सामने कोई भी बाधा टिक नहीं पाती। अपनी रोजमर्रा की ज़िन्दगी में हम कुछ ऐसे साथियों को भी देखते हैं, जो किसी ना किसी शारीरिक चुनौती से मुकाबला कर रहे हैं। बहुत से ऐसे भी लोग हैं जो या तो सुन नहीं पाते, या, बोलकर अपनी बात नहीं रख पाते। ऐसे साथियों के लिए सबसे बड़ा सम्बल होती है, सांकेतिक भाषा। लेकिन भारत में बरसों से एक बड़ी दिक्कत ये थी कि सांकेतिक भाषा के लिए कोई स्पष्ट हाव-भाव तय नहीं थे, मानक नहीं थे। इन मुश्किलों को दूर करने के लिए ही वर्ष 2015 में भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना हुई थी। मुझे ख़ुशी है कि ये संस्थान अब तक दस हज़ार शब्दों एवं अभिव्यक्तियों का शब्दकोश तैयार कर चुका है। दो दिन पहले यानि 23 सितम्बर को सांकेतिक भाषा दिवस पर, कई स्कूली पाठ्यक्रमों को भी सांकेतिक भाषा में शुरू किया गया है। सांकेतिक भाषा के तय मानक को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी काफी बल दिया गया है। सांकेतिक भाषा का जो शब्दकोश बना है, उसके वीडियो बनाकर भी उनका निरंतर प्रसार किया जा रहा है। यू ट्यूब पर कई लोगों ने, कई संस्थानों ने, भारतीय सांकेतिक भाषा में अपने चैनल शुरू कर दिए हैं, यानि,7-8 साल पहले सांकेतिक भाषा को लेकर जो अभियान देश में प्रारंभ हुआ था, अब उसका लाभ लाखों मेरे दिव्यांग भाई-बहनों को होने लगा है।

प्रधानमंत्री ने कहा, “हरियाणा की रहने वाली पूजा जी तो भारतीय सांकेतिक भाषा से बहुत खुश हैं। पहले वो अपने बेटे से ही संवाद नहीं कर पाती थीं, लेकिन,2018 में सांकेतिक भाषा की ट्रेनिंग लेने के बाद, माँ-बेटे दोनों का जीवन आसान हो गया है। पूजा जी के बेटे ने भी सांकेतिक भाषा सीखी और अपने स्कूल में उसने कथावाचन में पुरस्कार जीतकर भी दिखा दिया। इसी तरह, टिंकाजी की छह साल की एक बिटिया है, जो सुन नहीं पाती है। टिंकाजी ने अपनी बेटी को सांकेतिक भाषा का कोर्स कराया था लेकिन उन्हें खुद सांकेतिक भाषा नहीं आती थी, इस वजह से वो अपनी बच्ची से संवाद नहीं कर पाती थी। अब टिंकाजी ने भी सांकेतिक भाषा की ट्रेनिंग ली है और दोनों माँ-बेटी अब आपस में खूब बातें किया करती हैं। इन प्रयासों का बहुत बड़ा लाभ केरला की मंजू जी को भी हुआ है। मंजू जी, जन्म से ही सुन नहीं पाती है, इतना ही नहीं उनके अभिभावकों के जीवन में भी यही स्थिति रही है। ऐसे में सांकेतिक भाषा ही पूरे परिवार के लिए संवाद का जरिया बनी है। अब तो मंजू जी खुद ही सांकेतिक भाषा की शिक्षक बनने का भी फैसला ले लिया है।”

श्री मोदी ने कहा, “ मैं इसके बारे में ‘मन की बात’ में इसलिए भी चर्चा कर रहा हूँ ताकि भारतीय सांकेतिक भाषा को लेकर जागरूकता बढ़े। इससे हम, अपने दिव्यांग साथियों की अधिक से अधिक मदद कर सकेंगे। भाइयो और बहनों, कुछ दिन पहले मुझे ब्रेल में लिखी हेमकोश की एक प्रति भी मिली है। हेमकोश असमिया भाषा के सबसे पुराने शब्दकोशों में से एक है। यह 19वीं शताब्दी में तैयार की गई थी। इसका सम्पादन प्रख्यात भाषाविद् हेमचन्द्र बरुआ जी ने किया था। हेमकोश का ब्रेल प्रति करीब 10 हज़ार पन्नों का है और यह 15 संस्करणों से भी अधिक में प्रकाशित होने जा रहा है। इसमें 1 लाख से भी अधिक शब्दों का अनुवाद होना है। मैं इस संवेदनशील प्रयास की बहुत सराहना करता हूँ। इस तरह के हर प्रयास दिव्यांग साथियों का कौशल और सामर्थ्य बढ़ाने में बहुत मदद करते हैं। आज भारत पैरास्पोर्ट्स में भी सफलता के परचम लहरा रहा है। हम सभी कई टूर्नामेंट में इसके साक्षी रहे हैं। आज कई लोग ऐसे हैं, जो दिव्यांगों के बीच फिटनेस के रुझान को जमीनी स्तर पर बढ़ावा देने में जुटे हैं। इससे दिव्यांगों के आत्मविश्वास को बहुत बल मिलता है।”

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