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अंबानी की सुरक्षा को सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी

नयी दिल्ली, 22 जुलाई: उच्चतम न्यायालय ने रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के अध्यक्ष मुकेश अंबानी एवं उनके परिवार को केंद्र सरकार की ओर से मुंबई में दी जा रही सुरक्षा को जारी रखने की शुक्रवार को अनुमति दे दी।

मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने श्री अंबानी एवं उनके परिवार को दी जा रही जेड प्लस सुरक्षा को उचित करार दिया।

पीठ ने कहा कि त्रिपुरा उच्च न्यायालय के समक्ष सुरक्षा को चुनौती देने वाली जनहित याचिका की सुनवाई जारी रखने का उसे कोई कारण नहीं लगता।

शीर्ष न्यायालय ने बिकास शाह द्वारा त्रिपुरा उच्च न्यायालय के समक्ष दायर जनहित याचिका को गैरजरूरी बताते हुए केंद्र सरकार की अपील स्वीकार कर ली। केंद्र सरकार ने सुरक्षा जारी रखने की गुहार लगाई थी।

उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च अदालत ने इस बात पर भी गौर किया कि श्री अंबानी अपनी सुरक्षा की लागत का भुगतान सरकार को कर रहे हैं।

न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला की अवकाशकालीन पीठ ने 29 जून को संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद त्रिपुरा उच्च न्यायालय में सुरक्षा के सवाल पर दायर जनहित याचिका पर चल रही सुनवाई पर अंतरिम रोक लगा दी थी।
केंद्र सरकार की सिफारिश पर श्री अंबानी और उनके परिवार को दी जा रही सुरक्षा पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिका में उन्हें (अंबानी एवं उनके परिवार को) के खतरे की आशंका से संबंधित विवरण मांगने के त्रिपुरा उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ केंद्र ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

सॉलिसिटर जनरल ने तर्क देते हुए शीर्ष न्यायालय के समक्ष कहा था कि श्री अंबानी को प्रदान की गई सुरक्षा का त्रिपुरा सरकार से कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए जनहित याचिका पर विचार करने का वहां के उच्च न्यायालय के पास कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।
श्री मेहता ने उच्च न्यायालय के उस आदेश की वैधता पर भी सवाल उठाया, जिसमें खतरे की आशंका से संबंधित दस्तावेजों के साथ केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों को उच्च न्यायालय ने अपने अंतरिम आदेश में 28 जून को पेश होने के लिए कहा गया था।
सॉलिसिटर जनरल ने शीर्ष न्यायालय के समक्ष यह भी कहा था कि केंद्र ने त्रिपुरा उच्च न्यायालय को यह भी बताया गया था कि बॉम्बे उच्च न्यायालय ने अंबानी को सुरक्षा प्रदान करने पर इसी तरह की एक याचिका को खारिज कर दी थी।

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