लोकरूचि कल्पवास गोंडा दो अंतिम गोंडा
इस का महात्म्य स्कन्द पुराण में भी इस तरह मिलता है। ‘दशकोटि सहस्त्राणि, दस कोटि शतानि च। तीर्थानि सरयू नद्या घर्घरोदक संगमें’ अर्थात सरयू व घाघरा तट पर हजारों तीर्थ विद्यमान हैं। रामचरित मानस के बालकांड में भी इस पुण्य क्षेत्र का उल्लेख मिलता है।
मानस में कहा गया है कि ‘त्रिविधि ताप नाशक त्रिमुहानी’ ऐसी मान्यता है। कि संगम के त्रिमुहानी में स्नान करने से लोगों को तीनों तापों से मोक्ष प्राप्त होता है। इस लिये पसका संगम को लघु प्रयाग भी कहा गया है। इस लिये पौष पूर्णिमा पर शुक्रवार को लाखों श्रद्धालु स्नान, दान कर भागवत भजन करेंगे। हिरण्याक्ष का मर्दन करने के बाद पृथ्वी पुन :स्थापित की गयी। इसके फलस्वरूप इस धरती को मेदिनी के नाम से भी जाना जाने लगा।
इसी के साथ माँ बाराहीं का अवतरण हुआ जो यहाँ उत्तरी भवानी के नाम से विख्यात है। कल्पवास के दौरान भगवान वाराह के अनुयायी यहां स्थापित भगवान बाराह के मंदिर परिसर में लोग वैदिक रीति रिवाज़ से मुंडन ,यज्ञोपववीत ,विवाह व अन्य रस्मों को अदा कर भव्य भंडारे का आयोजन करते है। आगामी छह जनवरी को पौष पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाले विशाल मेले को लेकर क्षेत्र में मेला स्थल के इर्द गिर्द व्याप्त गंदगी व त्रिमुहानीं घाट पर शवों के अंतिम संस्कार के अवशेष व गंदगी से कल्पवास करने आये ऋषि मुनियों मे आक्रोश हैं।
प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार ,मेला क्षेत्र में सुरक्षा और मूलभूत सुविधाओं के पुख्ता प्रबंध किये गये है।