उत्तर प्रदेश

सीता समाहित स्थल बना है आस्था का केन्द्र

भदोही 15 अप्रैल : उत्तर प्रदेश के भदोही जिले में परम पावनी मंदाकिनी तट स्थित सीता समाहित स्थल (सीतामढ़ी) इन दिनों सैलानियों की आस्था का केंद्र बिंदु बना है। हजारों की तादाद में यहां पहुंचने वाले सैलानी सीता समाहित स्थल व महर्षि वाल्मीकि आश्रम का अवलोकन कर मां सीता के चरणों में शीश नवाते हैं।

जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर, काशी प्रयाग के मध्य अवस्थित सीता समाहित स्थल एवं बाल्मीकि आश्रम में नित्य प्रति पहुंचने वाले सैलानी आश्रम के प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर अभिभूत होते हैं। आश्रम में देश- विदेश से आने वाले सैलानियों का दिन भर तांता लगा रहता है। सुबह से शुरू हुआ सैलानियों के पहुंचाने का सिलसिला देर शाम तक चलता रहता है।

मान्यता है कि मां सीता ने इसी बाल्मीकि आश्रम में लव कुश को जन्म दिया था। भगवान श्री राम के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को लव कुश ने यही पकड़कर बांधा था। घोड़े को छुड़ाने पहुंचे पवनसुत हनुमान को भी लव कुश ने यही बंधक बनाया था। गंगा नदी के पावन तट पर स्थित इसी बाल्मीकि आश्रम के पास ही मां सीता धरती में समाहित हुई थी। जबकि बिहार स्थित सीतामढ़ी को मां सीता के प्राकट्य स्थल के रूप में जाना जाता है।

सीता समाहित स्थल से थोड़ी दूर स्थित उड़िया बाबा की तपोस्थली साधु-संतों वह महात्माओं को तमाम पौराणिक महामात्य से परिचित करती है। यहां आज भी तमाम साधु संत रहकर ध्यान साधना में लीन दिखाई पड़ते हैं। बताया जाता है कि 1990 के दशक में स्वामी जितेंद्रानंद जी का उड़िया बाबा आश्रम में आगमन हुआ। इस स्थान की प्राकृतिक छटा एवं सौंदर्य को देख स्वामी जी ने कुछ समय यहां बिताने का निश्चय किया।

स्थानीय लोगों के सेवा भाव से अभिभूत होकर उन्होंने क्षेत्र के विकास, शिक्षा एवं स्वास्थ्य के लिए कुछ कर गुजरने का मन बना लिया। फिर क्या था उन्होंने इधर उधर से मदद मांगकर सीता समाहित स्थल पर भव्य मंदिर का निर्माण शुरू करा दिया। इसी बीच दिल्ली के प्रतिष्ठित कारोबारी सत्य नारायण प्रकाश पुंज का यहां आगमन हुआ। स्वामी जितेंद्रानंद से प्रभावित एवं धार्मिक भावना से ओतप्रोत होकर श्री पुंज ने सीता समाहित स्थल के संपूर्ण निर्माण की ठान ली। फिर क्या देखते ही देखते सीतामढ़ी में मां सीता की धरती में समाहित होती प्रतिमा के साथ भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया।

उसी दौर में मंदिर परिसर में हनुमान जी की 108 फिट ऊंची प्रतिमा भी एक पहाड़ रूपी टीले पर बनकर तैयार हो गई,जो कई किलोमीटर दूर से ही दिखाई दे कर श्रद्धालुओं को अनायास अपनी और आकर्षित करती है। टीले में ही हनुमान जी का भव्य मंदिर बना है।

मंदिर परिसर में भव्य गेस्ट हाउस, रेस्टोरेंट, म्यूजियम, तालाब व लान आदि बनकर परिसर की शोभा बढ़ाते हुए दशकों से जनसेवा के लिए उपलब्ध हैं। मंदिर परिसर में ही शिव जटा से निकली गंगधार ऐसा प्रतीत कराती है जैसे गंगा का उद्गम स्थल गंगोत्री यहीं हो। देखते ही देखते सीता समाहित स्थल एक भव्य पर्यटक स्थल का रूप ले चुका है। 17 अप्रैल वर्ष 1998 में केन्द्र सरकार के तत्कालीन सांस्कृतिक एवं पर्यटन मंत्री जगमोहन ने जहां विशालकाय हनुमान प्रतिमा का अनावरण किया वहीं पूर्व राष्ट्रपति डा शंकर दयाल शर्मा की पत्नी विमला शर्मा ने सीता समाहित मंदिर का उद्घाटन किया। इसके बाद मंदिर का दरवाजा आम जनता के दर्शनार्थ हमेशा के लिए खोल दिया गया।

मंदिर परिसर में ही सौ वर्ष से अधिक पुराना वट वृक्ष है। वटवृक्ष के दर्शन पूजन के लिए दूरदराज से महिलाएं पहुंचती हैं। मान्यता है कि बटवृक्ष के दर्शन से संतान सुख की प्राप्ति होती है। क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि सरकार सीतामढ़ी को पर्यटक स्थल घोषित कर देती है तो क्षेत्र के चौमुखी विकास में जहां चार चांद लगेगा वही पर्यटकों के आने से रोजगार के बेहतर अवसर प्राप्त होंगे।

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