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वर्ष 2023 में शेयर सूचकांकों में 7-8 प्रतिशत वृद्धि की संभावना:एमके इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज

मुंबई, 28 दिसंबर : एम के ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज के प्रभाग एम के इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज ने ब्याज दर में बढ़ोतरी और वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी को अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती बताते हुए हुए अनुमान लगाया है कि कैलेंडर वर्ष 2023 में निफ्टी-50 की सूची में शामिल कंपनियों के सकल लाभ में मोटे तरह पर 15 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है और अगले वर्ष दिसंबर तक निफ्टी-50 सूचकांक 19,500 अंक और बीएसई-30 सेंसेक्स 64500 के स्तर तक रह सकता है।

एम के इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज ने इस रिपोर्ट में कैलेंडर वर्ष 2023 के लिए अर्थव्यवस्था, विभिन्न बाजार खंडों, कंपनियों के लाभ, विदेशी विनिमय दर, मौद्रिक नीति और कच्चे तेल एवं इसके बाद के आर्थिक प्रभाव पर एक दृष्टिकोण साझा किया।

कंपनी के विश्लेषकों ने एक आनलाइन संवाददाता सम्मेलन में यह रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि भारतीय शेयर बाजार घरेलू निवेशकों के समर्थन से उस समय भी मजबूत बना रहा जब कि अमेरिका में नीतिगत ब्याज में अभूतपूर्व वृद्धि के दौर में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक पूंजी निकाल रहे थे। विश्लेषकों ने कहा भारत की अर्थव्यवस्था और बाजार मजबूत खड़ा है और विदेशी निवेशक शेयर बाजार में लौटने लगे है। ”

उनका यह भी कहना है कि इस समय निफ्टी कंपनियों के शेयरों के भाव काफी ऊंचे हैं, जिसके कारण आने वाले महीनों के लिए चुनौती हो सकता है। विश्लेषकों ने कहा कि इस समय निफ्टी 50 का मूल्य: लाभ अनुपात करीब 30 प्रतिशत पर है जबकि पिछले दस-पंद्रह वर्ष में यह अनुपात औसतन 17 प्रतिशत के इर्द-गिर्द था।

एमके इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की एक विज्ञप्ति में कहा गया है,“ वैश्विक वृहद-आर्थिक परिस्थितयों और भू-राजनैनिक स्थिति में कोई नाटकीय बदलाव नहीं हुआ तो मौजूदा हालात को देखते हुए निफ्टी के दिसंबर 2023 तक 19,500 तथा
सेंसेक्स के 64,500 तक पहुंचने की उम्मीद है। ”

यह इन प्रमुख सूचकांकों के मौजूदा स्तरों से 7-8 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।
फर्म की रिपोर्ट में कहा गया है कि नये वर्ष में निफ्टी-50 की कंपनियों के शुद्ध लाभ में औसत वृद्धि में बैंकिंग, वाहनों के मूल उपकरण निर्माता और उनकी अनुषंगी, तेल एवं गैस विश्लेषकों को उम्मीद है कि इस समय मंदी में चल रहे आईटी क्षेत्र की कंपनियों के शेयर अगले छह महीने में तेजी पकड़ सकते हैं। वैश्विक मुद्राओं के समक्ष डालर की विनिमय दर चिंता का विषय बनी हुई है।संभावित वैश्विक मंदी की गहराई और उसके आयाम तथा अमेरिकी बैंकिंग नियामक फेडरल रिजर्व की नीतिगत दरों में वृद्धि की गति पूंजी बाजारों को प्रभावित कर सकती हैं।

एम के इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के सीईओ नीरव शेठ ने कहा,“ प्रमुख मुद्राओं के साथ डालर की विनिमय दर चिंता का विषय बनी हुई है क्योंकि इसका अन्य बातों पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है। ”
उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति के साथ साथ आर्थिक वृद्धि की आवश्कताओं को भी ध्यान रखते हुए ब्याज दरों में फेड की तुलना में वृद्धि कम की है लेकिन आरबीआई विनिमय दर की चिंताओं के कारण फेड की ब्याज दर नीति का अनुगमन जरूर करेगा। उन्होंने कहा, “ फिर भी हम उम्मीद करते हैं कि कैलेंडर वर्ष 2023 की दूसरी तिमाही के बाद रेपो वृद्धि का सिलसिला लम्बे समय के लिए स्थगित कर देगा। ”

एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज के अनुसंधान प्रमुख संजय चावला ने कहा,“ ऊंची ब्याज दरें और ब्रेंट कच्चा तेल की कीमतों में अचानक वृद्धि आने वाले 6-12 महीनों में बाजार के लिए संभावित चुनौतियां हैं।”
उन्होंने कहा कि सरकार का पूंजीगत गहन बजट निवेश को प्रोत्साहित कर सकता है पर वैश्विक और घरेलू आर्थिक वृद्धि को लेकर अनिश्चितताएँ पूंजी बाजार के लिए बाधा बन सकती हैं।

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