लोकरूचि हवेली दरवाजा दो अंतिम महोबा
कालांतर में अंग्रेजों की उस बर्बरता के मूक गवाह इमली के पेड़ को इलाकाई लोगों ने नासमझी के कारण काट कर समाप्त कर दिया। इसके बाद बाकी का काम अतिक्रमण कारियों ने कर मैदान में अवैध कब्जे करके सिकोड़ कर उसे संकुचित कर दिया। जिससे यहां लड़ी गई जंग ए आजादी की उस बड़ी लड़ाई की स्मृतियां लोगों के मन मस्तिष्क में धुंधलाती गईं।
हवेली दरवाजा शहीद स्थल को स्मारक में तब्दील करने की पहल वर्ष 1995 में महोबा के प्रथक जनपद के रूप में अस्तित्व में आने के उपरांत यहां के पहले जिलाधिकारी उमेश सिन्हा ने की थी।उन्होंने इसके विकास का आकर्षक प्लान तैयार कराया था लेकिन कतिपय लोगों द्वारा यहां भूस्वामित्व का विवाद खड़ा कर देने से मामला खटाई में पड़ गया।
बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकर ने इसके लिए संघर्ष करते हुए कोई दो साल पहले भूख हड़ताल शुरू की तो मामले में नगर प्रशासन सक्रिय हुआ और नगर पालिका परिषद ने जमीन को अपना बताते हुए उसमे शहीद स्मारक एवम पार्क निर्माण के लिए एक प्रोजेक्ट तैयार कराया। जिसके लिए 32 लाख रुपये के बजट को भी स्वीकृति प्रदान की गई। किन्तु भूमाफिया द्वारा इसके विरोध में भी उच्च न्यायालय चले जाने से यह योजना टॉय.टॉय फिस्स हो गई।
चेयरमेन दिलाशा तिवारी ने बताया कि महोबा में हवेली दरवाजा शहीद स्थल ऐतिहासिक धरोहर है। जिसका विकास नगर प्रशासन का दायित्व है। पालिका उक्त भूमि के मालिकाना हक के लिए हाई कोर्ट में लड़ रही है। न्यायालय का निर्णय आते ही मौके पर भव्य शहीद स्मारक का निर्माण शुरू होगा।