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पाक, चीन से सामान्य संबंध के लिए सीमा पर शांति, आतंक मुक्त माहौल जरूरी : मोदी

हिरोशिमा, 19 मई (वार्ता) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान एवं चीन के साथ सामान्य पड़ोसी देशों जैसे संबंध रखने की की इच्छा का इजहार करते हुए कहा है कि इसके लिए सीमा पर शांति स्थिरता और आतंकवाद एवं शत्रुता की भावना से मुक्त वातावरण जरूरी है।

श्री मोदी ने जापान, पापुआ न्यूगिनी एवं ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर रवाना होने के पहले नयी दिल्ली में जापानी अखबार निक्केई एशिया को दिये एक साक्षात्कार में यह बात कही। आज यहां प्रकाशित इस साक्षात्कार में श्री मोदी ने रूस-यूक्रेन संघर्ष, रूस भारत कारोबार, क्वॉड और शंघाई सहयोग संगठन, चीन एवं पाकिस्तान, भारत में चुनावों एवं अमृतकाल में भारत को विकसित देश बनाने के लक्ष्य पर भी बात की।

श्री मोदी जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के निमंत्रण पर आज रात जापान के ऐतिहासिक नगर हिरोशिमा पहुंचे जहां वह शनिवार एवं रविवार को जी-7 शिखर सम्मेलन और क्वॉड शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। प्रधानमंत्री के हिरोशिमा पहुंचने पर

प्रधानमंत्री ने कहा कि वह जी-7 के शिखर सम्मेलन में ग्लोबल साउथ के 125 विकासशील देशों की आवश्यकताओं एवं चिंताओं को प्रतिध्वनित करने और वह इसवर्ष की भारत की अध्यक्षता वाले जी- 20 समूह के साथ तालमेल बढ़ाने का प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा कि वह ऊर्जा, डिजिटल प्रौद्योगिकी और आपूर्ति श्रृंखला जैसे क्षेत्रों में वैश्विक परिवर्तनों एवं चुनौतियों पर चर्चा करने के लिए उत्सुक हैं। उन्होंने कहा, “मैं इन चुनौतियों से निपटने में एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में भारत की भूमिका पर जोर दूंगा। बैठक में भारत का अनुभव दृढ़ता से प्रतिध्वनित होगा।”

श्री मोदी ने कहा, ‘ग्लोबल साउथ के एक सदस्य के रूप में, किसी भी बहुपक्षीय सेटिंग में हमारी रुचि विविध आवाजों के बीच एक सेतु के रूप में काम करना और रचनात्मक और सकारात्मक एजेंडे में योगदान देना है।’

उल्लेखनीय है कि भारत ने दिसंबर में इंडोनेशिया से जी-20 की अध्यक्षता संभाली थी। इसके तुरंत बाद, जनवरी में, इसने 125 देशों को आकर्षित करते हुए वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट का ऑनलाइन आयोजन किया जिसमें अधिक संतुलित प्रतिनिधित्व के लिए अंतरराष्ट्रीय निकायों में सुधार के लिए कई देशों की इच्छा पर जोर दिया गया।

साक्षात्कार में श्री मोदी ने भारत के अपने दो निकटतम पड़ोसियों – चीन और पाकिस्तान के साथ खराब संबंधों पर भी बात की। चीन के साथ हिमालयी सीमा पर जारी गतिरोध के बीच उन्होंने कहा, “भारत अपनी संप्रभुता और सम्मान की रक्षा के लिए पूरी तरह से तैयार और प्रतिबद्ध है।” सीमा पर तनाव ने समूचे द्विपक्षीय संबंधों को तनावपूर्ण कर दिया है, खासकर 2020 की झड़प के बाद से जिसमें 20 भारतीय और बड़ी संख्या में चीनी सैनिक मारे गए थे – दशकों में परमाणु-सशस्त्र पड़ोसियों के बीच पहली घातक लड़ाई हुई थी।

श्री मोदी ने कहा, “चीन के साथ सामान्य द्विपक्षीय संबंधों के लिए सीमावर्ती इलाकों में अमन-चैन जरूरी है। भारत-चीन संबंधों का भविष्य का विकास केवल आपसी सम्मान, आपसी संवेदनशीलता और आपसी हितों पर आधारित हो सकता है।” उन्होंने यह भी कहा कि भारत चीन संबंधों को ‘सामान्य’ करने से व्यापक क्षेत्र और दुनिया को लाभ होगा।

पाकिस्तान के बारे में श्री मोदी ने कहा कि नयी दिल्ली ‘सामान्य और पड़ोसी संबंध’ चाहती है। हालांकि, आतंकवाद और शत्रुता से मुक्त एक अनुकूल वातावरण बनाना उनके लिए आवश्यक है। इस संबंध में आवश्यक कदम उठाने की जिम्मेदारी पाकिस्तान की है।

जापान के साथ भारत के संबंधों के बारे में एक सवाल पर उन्होंने कहा कि जापान और भारत के लोकतंत्र, स्वतंत्रता और कानून के शासन के साझा मूल्य स्वाभाविक रूप से उन्हें करीब लाए हैं। अब हम अपने राजनीतिक, सामरिक, सुरक्षा और आर्थिक हितों में एक बढ़ता हुआ सामंजस्य देखते हैं।

यह पूछे जाने पर कि क्या भारत यूक्रेन एवं रूस के बीच संघर्ष में मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है, उन्होंने कहा कि यूक्रेन विवाद पर उनके देश की स्थिति ‘स्पष्ट और अटल’ है। भारत शांति के पक्ष में खड़ा है, और दृढ़ता से रहेगा। हम उन लोगों का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं जो अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में चुनौतियों का सामना करते हैं, विशेष रूप से भोजन, ईंधन और उर्वरकों की बढ़ती कीमतों के कारण। हमने रूस और यूक्रेन, दोनों के साथ संवाद कायम रखा है। उन्होंने कहा, “हमारे समय को सहयोग और सहभाग से परिभाषित किया जाना चाहिए, ना कि संघर्ष से।”

अमेरिका के ‘महत्वपूर्ण रणनीतिक साझीदार’ और अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ चतुर्भुज सुरक्षा संवाद या क्वाड का हिस्सा होने के बावजूद भारत का चीन और रूस के नेतृत्व वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का भी सदस्य होने के बारे में पूछे जाने पर श्री मोदी ने साफ किया कि भारत ने कभी भी खुद को सुरक्षा गठजोड़ से नहीं जोड़ा है। इसके बजाय, भारत अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर दुनिया भर में दोस्तों और समान विचारधारा वाले भागीदारों की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ जुड़ा है। उन्होंने कहा कि क्वाड देशों का सामूहिक फोकस ‘एक मुक्त, खुले, समृद्ध और समावेशी भारत-प्रशांत क्षेत्र को बढ़ावा देने’ पर है। दूसरी ओर, एससीओ महत्वपूर्ण मध्य एशियाई क्षेत्र के साथ भारत के जुड़ाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इन दो समूहों में भाग लेना भारत के लिए विरोधाभासी बात नहीं है।

सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए भारत की दावेदारी और संयुक्त राष्ट्र सुधार के मुद्दे पर, श्री मोदी ने वैश्विक शासन संस्थानों की ‘सीमाओं’ की बात की, जो ‘पुरानी मानसिकता तक ही सीमित’ हैं। उन्होंने कहा, “जलवायु परिवर्तन, कोविड-19 महामारी, आतंकवाद और वित्तीय संकट जैसी समकालीन चुनौतियों से निपटने में ये कमियां उभर कर सामने आयीं हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और इसकी निर्णय लेने की प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर हमेशा सवाल उठेंगे क्योंकि इस वैश्विक निकाय ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के साथ-साथ अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे पूरे महाद्वीपों को स्थायी आधार पर प्रतिनिधित्व से वंचित करके रखा है।

श्री मोदी ने उनकी घरेलू प्राथमिकताओं के बारे में पूछे जाने पर, कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक रही है। उन्होंने कहा, “हमारी प्रगति स्पष्ट है, क्योंकि हम 2014 में दसवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से उठकर अब दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए हैं। हालांकि यह सच है कि वैश्विक विपरीत परिस्थितियां विकास के लिए चुनौतियां खड़ी करती हैं, हमने हाल के वर्षों में एक मजबूत नींव बनाई है, जो हमें एक अनुकूल परिस्थिति में रखती है।” उन्होंने कहा कि उनकी सरकार का लक्ष्य आजादी के 100 साल पूरे होने के मौके पर अगले 25 वर्षों के भीतर भारत को एक विकसित राष्ट्र में बदलना है।

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