पूर्व डीजीपी पर मामला दर्ज करने वाले वनाधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही पर रोक
नैनीताल 15 नवंबर : उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कार्बेट पार्क के निदेशक व मंसूरी के तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी (डीएफओ) डा. धीरज पांडे व अन्य वनाधिकारियों के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में चल रही कार्यवाही पर रोक लगा दी है। साथ ही सरकार से पूरे प्रकरण में जवाब पेश करने को कहा है।
मामला प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) बीएस सिद्धू के आरक्षित वन क्षेत्र में भूमि खरीदने से जुड़ा हुआ है। आरोप है कि श्री सिद्धू ने डीजीपी के पद पर रहते हुए देहरादून के बीरगीरवाली गांव में 20 नवम्बर, 2012 को आरक्षित वन क्षेत्र में अवैध ढंग से 7450 वर्गमीटर वन भूमि खरीद ली।
मंसूरी के तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी डा. धीरज पांडे ने इसके विरोध में श्री सिद्धू के खिलाफ अभियोग पंजीकृत करा दिया गया। इस मामले में आज भी वाद लंबित है।
पूर्व डीजीपी सिद्धू की ओर से भी नौ जुलाई, 2013 को डीएफओ पांडे और अन्य वनाधिकारियों के खिलाफ अभियोग पंजीकृत करा दिया गया। देहरादून की ट्रायल कोर्ट ने इसी का संज्ञान लेते हुए पिछले महीने 21 अक्टूबर, 2022 को प्रतिवादियों को समन जारी कर दिया।
डा. पांडे इसके खिलाफ उच्च न्यायालय पहुुंच गये। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति रवीन्द्र मैठाणी की पीठ में हुई। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने अदालत को बताया कि श्री सिद्धू ने अपने पद का दुरूपयोग करते हुए न केवल फर्जी तरीके से आरक्षित वन क्षेत्र में भूमि खरीदी गयी बल्कि पेड़ों को भी काटा गया।
जब डा. पांडे ने अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए श्री सिद्धू के खिलाफ अभियोग पंजीकृत किया तो बदले की भावना में पूर्व डीजीपी ने भी उनके खिलाफ मामला दर्ज करा दिया। श्री गुप्ता ने अदालत को पूर्व डीजीपी सत्यव्रत का वह पत्र भी दिखाया जिसमें श्री सिद्धू के खिलाफ जांच के बाद सरकार से कार्यवाही की संस्तुति की गयी थी।
साथ ही 18 अप्रैल, 1970 को जारी अधिसूचना की प्रति भी अदालत के समक्ष रखी गयी जिसमें संबद्ध क्षेत्र को आरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया गया था। जहां डीजीपी ने आरक्षित वन क्षेत्र में भूमि खरीदी है।
उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि श्री सिद्धू ने इसके लिये वनाधिकारियों व पुलिस अधिकारियों पर भी अनावश्यक दबाव बनाया है। जिसको लेकर श्री सिद्धू के खिलाफ कुछ हाल ही में 25 अक्टूबर, 2022 को अभियोग पंजीकृत किया गया है।
श्री गुप्ता ने बताया कि अंत में अदालत ने वनाधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगा दी है और सरकार को जवाब पेश करने को कहा है। इस मामले में चार सप्ताह बाद सुनवाई होगी।